For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ;रिश्तों में जो थीं.. /श्री सुनील

2212 2122 2212

रिश्तों में जो थी दरारें, भरने लगीं
पहले सा मैं, आप तब सी लगने लगीं.

चुप्पी सी थी इक ख़ला सा था बीच में
उम्मीद की वां शुआऐं दिखने लगीं.

अब ये जहाँ तेरी ज़़द में लगता है, लो!
आँचल में तेरे फ़िज़ाऐं छुपने लगीं.

जब फ़ासलों में पड़ीं थोड़ी सिलबटें
ये क़ुर्बतें अपनी सब को खलने लगीं.

तू मेरी होगी, यकीं ये था क्योंकि इन
हाँथो में तुम सी लकीरें बनने लगीं.

किस जज्बे से तुम दुआएं करती हो वां
पहलू से अब यां बलायेें टलने लगीं.


मौलिक व अप्रकाशित

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on June 25, 2015 at 6:34pm
ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथलेश वामनकर सर जी.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 2:07am

आदरणीय सुनील जी बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर 

Comment by shree suneel on June 14, 2015 at 9:01am
ग़ज़ल पसंदगी के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी. सादर.
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 13, 2015 at 10:46pm

आ० भाई श्री सुनील जी! बहुत ख़ूब! बहुत ख़ूब! मतले पर अलग से दाद प्रेषित है!खूबसूरत गज़ल हार्दिक बधाइयाँ!

Comment by shree suneel on June 11, 2015 at 9:00pm
ग़ज़ल में शिर्कत व सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 1:32pm

आदरनीय श्री सुनील भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by shree suneel on June 11, 2015 at 11:46am
ग़ज़ल में शिर्कत व सराहना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय भाई नरेंद्र जी.
Comment by narendrasinh chauhan on June 11, 2015 at 11:18am

किस जज्बे से तुम दुआएं करती हो वां
पहलू से अब यां बलायेें टलने लगीं. बहुत खूब

Comment by shree suneel on June 10, 2015 at 11:20pm
ग़ज़ल पे उपस्थिति और सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सुनील प्रसाद जी. जहां त्रुटियां थीं उसे स्पष्ट करते तो अच्छा होता. सादर.
Comment by shree suneel on June 10, 2015 at 11:07pm
धन्यवाद आदरणीय राहुल दांगी जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service