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मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं

मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन/फ़ाइलान


मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं
हर दिल पे हो रहा है असर देखते नहीं

दीवाने अपने हाल से रहते हैं बेख़बर
किस सम्त हो रहा है सफ़र देखते नहीं

उर्यानियत के खेल इन्हें भी पसंद हैं
ख़ामोश हैं ये एहल-ए-नज़र देखते नहीं

वो देश हित की फ़िक्र में ग़लताँ हैं आज कल
ये और बात है कि इधर देखते नहीं

अंजान बन के पूछ रहे हो कि क्या हुवा
अख़बार में छपी है ख़बर देखते नहीं

कुछ देर और सब्र का दामन न छोड़ना
वो सामने खड़ी है सहर देखते नहीं

हर लम्हा जिन को इज़्ज़त-ओ-ग़ैरत का पास है
पगड़ी को देखते हैं वो सर देखते नहीं

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on July 19, 2015 at 10:01am
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2015 at 1:37am

अंजान बन के पूछ रहे हो कि क्या हुवा
अख़बार में छपी है ख़बर देखते नहीं
इस शेर के हवाले से इस ग़ज़ल पर ढेरो शुभकामनाएँ दे रहा हूँ, आदरणीय समर साहब.

Comment by Samar kabeer on June 25, 2015 at 11:44pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by दिनेश कुमार on June 25, 2015 at 11:06pm
बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है सर.
एक एक शे'र कमाल का है। जिस दिन आप ने पोस्ट की थी, उसी दिन पढ़ ली थी। लेकिन प्रतिक्रिया अब कर रहा हूँ।
ढेरों दाद व मुबारकबाद आदरणीय समर कबीर सर.
Comment by Samar kabeer on June 25, 2015 at 10:54pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 2:05am

आदरणीय समर कबीर जी 

क्या कमाल की ग़ज़ल कही है 

एक एक शेर कमाल है 

बस झूम रहा हूँ इसे गुनगुनाकर 

आपकी ग़ज़लों से बस सीखता हूँ 

आदरणीय वीनस भाई जी की स्टाइल में ही मैं भी कह रहा हूँ - जिंदाबाद जिंदाबाद 

Comment by Samar kabeer on June 13, 2015 at 11:41pm
जनाब "जान" गोरखपुरी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 13, 2015 at 10:40pm

दीवाने अपने हाल से रहते हैं बेख़बर
किस सम्त हो रहा है सफ़र देखते नहीं    जिंदाबाद! जिंदाबाद!

आ० समर सर!इस बेहतरीन गजल पर शेर दर शेर दिली दाद कबूल करें!

Comment by Samar kabeer on June 10, 2015 at 10:43pm
जनाब सुनील प्रसाद जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 10, 2015 at 5:10pm
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

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