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खुद को रावण सा लिक्खूँगा

मानवता की नए सिरे से
नूतन परिभाषा लिक्खूँगा।
राम कृष्ण सब लिखो स्वयं को।
खुद को रावण सा लिक्खूँगा।।

जब तक जला नहीं लेता मैं
खुद के भीतर की कामुकता।
जब तक खत्म नहीं हो जाती
शक्ति बाहुबल की अभिलाषा।

जब तक मनस नगर में पुष्पित
है अक्षय स्पृहा वाटिका।
तब तक नैतिकता पर कैसे
कहिये अभिभाषण लिक्खूँगा।।
राम कृष्ण सब लिखो स्वयं को।
खुद को रावण सा लिक्खूँगा।।

जब तक इन आँखों में छाये
हुए रहेंगे लोभ के बादल।
जब तक इस सीने की धड़कन
को संचालित करेंगे काजल।

जब तक साँस साँस में मेरी
अभिलाषा की वायु घुलेगी।
तब तक पाप पुण्य पर कहिये
कैसे उच्चारण कर दूँगा।
राम कृष्ण सब लिखो स्वयं को।
खुद को रावण सा लिक्खूँगा।।


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 30, 2015 at 1:42pm
डॉ आशुतोष मिश्र सर हार्दिक आभार
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 30, 2015 at 1:24pm

आदरणीय पंकज जी ..आत्म चिंतन से ओत प्रोत शानदार शसक्त रचना के लिए ह्रदय से बधाई सादर 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 28, 2015 at 1:01pm
हर्ष महाजन सर सादर धन्यवाद
Comment by Harash Mahajan on July 28, 2015 at 11:34am

आदरणीय पंकज़़ जी बहूत ही सुंदर अहसासों से सुसज्जित आपकी ये कृति बहुत ही अच्छी हुई है | बहुत बहुत बधाई आपको !! सादर !!

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 27, 2015 at 10:37pm
आदरणीया कान्ता रॉय जी और राजेश कुमारी जी आप दोनों को सादर धन्यवाद; आप लोगों की शुभकामनाएं ऊर्जा-श्रोत हैं।
Comment by kanta roy on July 27, 2015 at 10:07pm
जब तक मनस नगर में पुष्पित
है अक्षय स्पृहा वाटिका।
तब तक नैतिकता पर कैसे
कहिये अभिभाषण लिक्खूँगा..... वाह !!! क्या सुंदर सोच का आगाज़ हुआ है । बधाई आदरणीय पंकज कुमार जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 10:00pm

बहुत उम्दा भाव सकारात्मक सोच को जीती सुन्दर कविता हार्दिक बधाई पंकज कम कुमार मिश्रा जी 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 27, 2015 at 9:24pm
शिज़्ज़ू शंकर भाई सादर धन्यवाद।

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर; उसको संशोधित कर दूँगा।
सुझाव के लिए हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 8:52pm

आदरणीय पंकज़़जी कविता के भाव अच्छे हैं बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 27, 2015 at 1:07pm

आदरणीय पंकज भाई , बहुत सुन्दर गीत रचना हुई है । आपको हार्दिक बधाई ।

शक्ति बाहुबल की अभिलाषा।   -- इस पंक्ति के विषय मे एक बार और सोहियेगा ,   शक्ति और बाहुबल एक साथ सही लग रहे हैं । 

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