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मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन

सब छोड़ छाड़ हम्द-ओ-सना में लगा रहा
आफ़त पड़ी जो सर प दुआ में लगा रहा

अब उससे नेकियों की तवक़्क़ो फ़ुज़ूल है
जो सारी उम्र जुर्म-ओ-सज़ा में लगा रहा

सीने में अपने झाँक के देखा नहीं कभी
हर सम्त वो तलाश-ए-ख़ुदा में लगा रहा

हिम्मत थी जिसमें ,छीन लिया बढ़ के अपना हक़
मजबूर था जो आह-ओ--बुका में लगा रहा

अच्छाई उसको छू के भी गुज़री नहीं कभी
उसका दिमाग़ सिर्फ़ ख़ता में लगा रहा

मैंने तो जान बूझ के धोया नहीं कभी
उसके लहू का दाग़ क़बा में लगा रहा

एह्ल-ए-जफ़ा ने ख़ूब रचीं साज़िशें "समर"
जो था वफ़ा परस्त,वफ़ा में लगा रहा

------
हम्द-ओ-सना :- ईश्वर की तारीफ़ (भक्ति)
तवक़्क़ो :- आशा
सम्त :- दिशा
आह-ओ-बुका :-चीख़ चीख़ के फरियाद करना
मक़नातीस :- चुम्बक
साज़िशें :- षडयंत्र
------

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on August 13, 2015 at 10:26pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2015 at 4:16pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय समर साहब.  दाद कुबूल कीजिये.

शुभ-शुभ

Comment by Samar kabeer on August 9, 2015 at 11:27pm
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 9, 2015 at 11:25pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,सबके भले में ही अपना भला है,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 9, 2015 at 11:22pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,मुहब्बत जैसी क़ीमती शय आप मुझे दे रहे हैं,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 9, 2015 at 11:18pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,आपकी मुहब्बतें मुझे हौसला देती हैं,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 9, 2015 at 11:15pm
जनाब रवि शुक्ल जी,आदाब,ऐसे ही स्नेह बनाए रखियेगा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 9, 2015 at 11:13pm
जनाब हर्ष महाजन जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by shree suneel on August 9, 2015 at 6:21pm
हिम्मत थी जिसमें ,छीन लिया बढ़ के अपना हक़
मजबूर था जो आह-ओ--बुका में लगा रहा... ख़ूब
अच्छी.. ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ आपको आदरणीय समर कबीर सर जी.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 9, 2015 at 1:05pm

आदरणीय  समर भाई बेहतरीन ग़ज़ल के लिये आपको शे र दर शेर मुबारक़ बाद ।

उस शे र को निकलवाने  के फैसले का मै स्वागत करता हूँ , और आ. कृष्णा भाई जी की बात से मै सहमत हूँ ।

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