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बेहद दुःखद ख़बर थी, रहमान नहीं रहा, फोन रखने के बाद भी वो बहुत देर तक सकते में रहा। अभी दो घंटे पहले ही तो लौटा था वो हॉस्पिटल से, ऐसी कोई बात लग तो नहीं रही थी, लेकिन अचानक एक अटैक आया और सब कुछ ख़त्म। मौत भी कितनी ख़ामोशी से दबे पाँव आती है, जिन्दगी को खबर ही नहीं होती और उसे शरीर से दूर कर देती है। तुरन्त कपड़े बदल कर कुछ रुपये, ए टी एम और बाइक की चाभी लेकर घर से निकल पड़ा। रास्ते भर पिछले कई साल उसके दिमाग में सड़क की तरह चलते रहे। चार साल पहले ही उसने ज्वाइन किया था इस ऑफिस में और धीरे धीरे रमता गया उसके ढर्रे में, शुरुवाती दिक्कतों में सबसे ज्यादा रहमान ने ही मदद की थी, लिहाज़ा वही सबसे करीबी दोस्त बन गया था। शुरू में उसने रहमान को बड़े भाई की तरह इज़्ज़त दी लेकिन कुछ दिनों में ही रिश्ता दोस्ती में बदल गया। उम्र का फ़र्क़ तो था दोनों के बीच में, रहमान उससे लगभग ८ साल बड़ा था और उसकी पत्नी और एक बेटी भी थी। रहमान की बीबी, जिसे वो भाभीजान कहता था, उसे हमेशा शादी के लिए छेड़ती रहती थीं लेकिन वो हंस के बात उड़ा देता था। एक बार उसने मज़ाक में कह दिया था कि काश आप की शादी नहीं हुई होती तो आपसे जरूर कर लेता, तो भाभी ने भी बहुत अफ़सोस से कहा था कि काश उनकी कोई छोटी बहन होती तो वो जबरदस्ती शादी करवा देतीं।
साल बीतते बीतते उसे पता चल गया था कि भाभीजान हिन्दू थीं, लेकिन रहमान ने कभी भी इसका जिक्र उससे नहीं किया था। उसे थोड़ा खटका था और उसने एक दिन पूछ ही लिया " आखिर इस बात को आप इतना छुपा कर क्यूँ रखते हैं, क्या समाज का डर है आपको।"
" समाज का डर तो नहीं है, होता तो शादी ही क्यूँ करता। दरअसल तुम्हारी भाभी के परिवार वालों को ये बिलकुल मंजूर नहीं था और उन्होंने पूरे तौर पर उनसे रिश्ता तोड़ लिया। हम पिछले ८ साल से इंतज़ार कर रहे हैं कि वो इसे क़ुबूल करें और फिर हम भी एक जश्न मनाएं। किसी लड़की के लिए इससे बड़ा दुःख और क्या सकता कि उसकी सबसे बड़ी ख़ुशी में ही उसके माँ बाप शरीक न हों।"
कुछ कहते नहीं बना उससे, अगर बच्चों ने फैसला कर ही लिया तो क्या माँ पिता उसमे शामिल होकर उनकी खुशियों को दुगुना नहीं कर सकते, उलटे उनसे रिश्ता जरूर तोड़ लिया| समय बीतता रहा, वो उनके घर का स्थायी सदस्य बन गया था, सबसे मज़ा तो आता था उनकी प्यारी बेटी श्यामली के साथ बात करने में| कितने सवाल पूछती रहती थी उससे और वो भी बिना धैर्य खोये उसके सब सवालों का जवाब देता रहता था| टॉफ़ी ले जाना कभी नहीं भूलता था वो और अगर कभी गलती से भूल गया तो पहला सवाल यही होता था श्यामली का " मेरी टॉफ़ी कहाँ है, भूल गए न आप| ठीक है कोई बात नहीं, अगली बार दो लेते आना, और उसके चेहरे पर मुस्कान खिल जाती थी|"
कभी कभी तो रहमान भी चुहल कर देता " अरे जितना ख्याल तुम इसका रखती हो, उसका आधा भी मेरा रखती तो मुझे नहीं खलता| ये तो मेरे हिस्से का प्यार बाँटने लगा है" और भाभीजान मुस्कुरा कर उसके सर पर हाथ फेर देतीं|
इसी सोच में डूबा कब पहुँच गया दरवाजे पर, उसे खुद पता नहीं चला| भाभीजान के रोने की आवाज़ उसके दिल को चीर दे रही थी, रात वहीँ बीती और सुबह जनाजे को कब्रिस्तान ले जाने का प्रबंध हुआ और फिर सभी अंतिम संस्कार निपटाये गए| भारी मन से वापस लौटकर उसने सोचा कि भाभीजान को दिलासा दे दे लेकिन हिम्मत नहीं पड़ी उनके पास जाने की| बहुत देर तक तो वो बाहर ही बैठा रहा और फिर वापस अपने कमरे पर लौट आया| फिर धीरे धीरे वापस नौकरी पर जाना आरम्भ हो गया और हर दिन शाम को लौटते समय उनके घर जाना नहीं भूलता था| श्यामली भी अब सामान्य हो गयी थी और उसको देखते ही खुश हो जाती थी और उससे बात करते समय वो भाभीजान से भी दो चार बातें कर लेता था| इस बीच उनके मायके से कुछ लोग आये थे और वापस चलने को कह रहे थे लेकिन उन्होंने जाने से स्पष्ट इंकार कर दिया|
उसके लगातार प्रयास करने से भाभीजान को रहमान की जगह कंपनी नौकरी देने को तैयार हो गयी थी, अब सवाल था उनको तैयार करने का| पहले तो उन्होंने मना किया कि वो कुछ और नौकरी ढूँढ लेंगी लेकिन उसके समझाने पर तैयार हो गयीं| नौकरी तो वो पहले भी करती ही थीं, लेकिन श्यामली के जन्म के बाद छोड़ दिया था| बच्चे की परवरिश उन्हें ज्यादा जरुरी लगी और रहमान ने भी सहमति जताई थी| शुरूआती झिझक और दिक्कतों के बाद वो कंपनी के काम में रमने लगीं, वो भी यथासंभव उनकी मदद करता रहता था| श्यामली से मिलने और बात करने के लिए उसे किसी बहाने की जरुरत नहीं थी और वो हर रोज़ शाम को उनके घर चला जाता और अक्सर खाना खा कर ही लौटता क्योंकि श्यामली की बात वो टाल नहीं पाता था|
एक दिन वो श्यामली से बात कर रहा था, तभी उसके एक सवाल ने उसे विचलित कर दिया " चाचा, क्या पापा अब कभी नहीं आएंगे, मुझे उनसे बहुत सी बातें करनी है|"
" क्यों नहीं बेटे, जरूर आएंगे वापस और तुम्हारे लिए बहुत से तोहफे भी लाएंगे| कह तो दिया उसने लेकिन खुद ही अपने खोखले लगते शब्दों पर भरोसा नहीं था उसको| अचानक उसकी नज़र भाभीजान पर पड़ी और उनकी आँखों के नम किनारे देख कर उसकी भी ऑंखें नम होने लगीं| उसने श्यामली को प्यार से थपथपाया और फिर बिना कुछ कहे घर से निकल गया| रास्ते भर उसे श्यामली की बात परेशान करती रही और वो उसका जवाब ढूंढने का प्रयास करता रहा|
कुछ दिनों से वो महसूस कर रहा था कि स्टाफ के लोग उसे देख कर बात करते करते चुप हो जाते थे, गोया उसी के बारे में बात हो रही हो| पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया लेकिन एक दिन एक बात उसके कान में भी पड़ी तो उसे धक्का सा लगा, कोई उसके और भाभीजान के बारे में बात कर रहा था| लोग ऐसा भी सोच सकते हैं, उसे विश्वास करना कठिन लग रहा था| कम से कम उसके और रहमान के रिश्ते को तो देखा है लोगों ने, फिर ऐसी सोच, दिमाग सुन्न हो गया उसका| शाम को श्यामली के सवालों का जवाब देने में वो अपने आप को बहुत उलझा महसूस कर रहा था, भाभीजान ने भी पूछा कि क्या बात है तो वो हंस के टाल गया|
रात को बहुत देर नींद नहीं आई उसे, बस वही सवाल उसे मथ रहा था| क्या लोग किसी रिश्ते को सच्ची निगाह से नहीं देख सकते, क्यूँ लोगों को हर रिश्ता गलत ही लगता है| इन्हीं सवालों में उलझा हुआ वो कब सो गया, उसे पता ही नहीं चला| सुबह उठकर उसने सोच लिया था कि आज भाभीजान से वो इस मामले में बात करेगा और ऑफिस चला गया| पुरे दिन उसने भाभीजान की तरफ देखा भी नहीं और शाम को श्यामली से बात करने पहुँच गया| भाभीजान को भी उसका व्यवहार कुछ अजीब लगा तो उन्होंने उसे बुलाया और पूछ लिया " क्या हुआ है तुमको कल से, इतनी चिंता किस बात की है| मुझे बताओ, शायद मैं हल कर सकूँ?
थोड़ी देर तक तो वो सोचता रहा कि कैसे पूछे इस सवाल को, फिर हिम्मत जुटा के उसने पूछ ही लिया " लोग हमेशा गलत ही क्यूँ सोचते हैं भाभीजान, क्या एक स्त्री और पुरुष में कुछ और रिश्ता नहीं हो सकता| क्या बिना किसी रिश्ते के ही दो लोग इतने करीब नहीं हो सकते|"
" ओह, तो ये बात है, मुझे तो पता ही था कि आज नहीं तो कल ये बात आएगी ही और लोग हमारे रिश्ते के बारे में पूछेंगे| क्या तुमको सच में लगता है कि हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं है, क्या तुम्हें श्यामली यूँ ही इतनी अच्छी लगती है|" भाभीजान ने एक गहरी सांस लेते हुए उसके चेहरे की तरफ देखा|
उसे भी लग रहा था कि कोई तो रिश्ता जरूर है उनके बीच में| अचानक उसे अपनी माँ याद आ गयी, आज भी वो उसको याद आती रहती है| लेकिन जब भी वो भाभीजान के घर रहता है, उसे एक अजीब सा सुकून मिलता रहता है| फिर उसे लगा, भाभी भी तो माँ समान ही होती है और उसके मन में चल रहा अंतर्द्वंद मिट गया|
" आपसे तो मेरा बहुत गहरा रिश्ता है भाभीजान, मेरी जिंदगी में माँ की कमी तो आपने ही पूरी की है| अब मुझे किसी भी बात की परवाह नहीं है, लोगों की बात का जवाब मैं दे दूंगा|" कहते हुए उसकी आँखों से आंसू बह निकले, शयामली उसके गोद में आ बैठी और भाभीजान उसके सर पर हाथ फेरने लगीं| आज सब कुछ बहुत शांत और प्यारा लगने लगा उसको और एक बार फिर उसने माँ को मन ही मन याद करके श्यामली को अपने सीने से चिपका लिया|
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on January 27, 2016 at 5:43pm

बहुत बहुत आभार आ मदन मोहन सक्सेना जी

Comment by Madan Mohan saxena on January 27, 2016 at 12:59pm

बेहतरीन

Comment by विनय कुमार on January 27, 2016 at 12:31pm

बहुत बहुत आभार आ कान्ता रॉय जी, आपको रचना पसंद आई, धन्यवाद 

Comment by kanta roy on January 27, 2016 at 9:14am

बड़ी सहजता से एक गहरी संवेदना को उकेड़ा है आपने।  बेहतरीन कहानी हुई है ये आपकी आदरणीय विनय सर जी।  बधाई आपको इस सार्थक रचना कर्म के लिए। 

Comment by विनय कुमार on January 26, 2016 at 7:36pm

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी, बहुत मुश्किल होता है लोगों द्वारा ऐसे रिश्तों को स्वीकारना, आपको बढ़िया लगी कहानी, लेखन को संतुष्टि मिली 

Comment by विनय कुमार on January 26, 2016 at 7:35pm

बहुत बहुत आभार आ समर कबीर साहब

Comment by TEJ VEER SINGH on January 26, 2016 at 6:50pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी!बहुत शान्दार और मार्मिक कहानी लिखी है!हृदय का हर कोना गदगद हो गया!लोग वास्तव में स्त्री पुरुष के रिश्ते को पाक नज़रों से क्यों नहीं देख पाते!यह बडा ज़टिल प्रश्न है परंतु जवाब कोई नहीं ढूंढ पाया!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Samar kabeer on January 26, 2016 at 5:33pm
जनाब विनय कुमार जी आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें !

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