For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बनारसी गईया चरा के लौटे और उनको चरनी पर बाँध के पीठ सीधा करने के लिए झोलंगी खटिया पर लेट गए। इस बार पानी महीनों से बरस नहीं रहा तो घाँस भी कम हो गयी है सिवान में, गर्मी अलग बढ़ गयी है। गमछी से माथे का पसीना पोंछते हुए मेहरारू को आवाज़ दिए " अरे तनी एक लोटा पानी त पिलाओ रघुआ की महतारी, बहुत गरम है आज"। दरवाज़े पर नज़र दौड़ाये तो साइकिल नहीं दिखी, मतलब रघुआ कहीं निकला है।
" कहाँ गायब हौ तोहार नवाब, खेत बारी से कउनो मतलब त नाहीं हौ, कम से कम गईया के ही चरा दिहल करत", पानी लेते हुए मेहरारू से बोले। ऐसे समय अक्सर रघुआ की महतारी चुप ही रहती है, पता है कि न तो ई मानेंगे और न रघुआ।
" अरे ऊ बजारे गयल हौ, कुछ किताब ख़रीदे खातिर। अब ओकर मन पढ़ाई में लगल हौ, त पढ़ लेवे द ओके", लोटा लेकर वापस जाते समय धीरे से बोली।
पानी पीकर थोड़ा ताज़ा हुआ मन तो चारा काट कर भूषा में मिलाकर नाँद में डाल दिया उसने। सब गायों को बाँध कर झउआ उठाया और गोबर फेंकने चल दिया, खाद और उपरी का इंतज़ाम तो हो ही जा रहा है इससे।
रघुआ बगल के गाँव के सिवान में एक जगह पेड़ों की ओट में साइकिल खड़ा करके इंतज़ार कर रहा था। आज वैलेंटाइन डे था और उसको भी कुछ देना था अपनी सरोज को, टी वी और अख़बार से उसे इतना तो पता चल ही गया था। एक अँगूठी खरीद लिया था उसने, सोने की तो नहीं थी लेकिन किताबों के लिए मिले पैसे होम हो गए उसमे। चारो तरफ देख रहा था वो कि कोई और तो नहीं देख रहा है, डर तो लगा ही रहता था लोगों का। कुछ आहट हुई और उसने पलट के देखा, सरोज दुपट्टा ओढ़े उसकी तरफ आ रही थी। जैसे ही वो करीब आई, उसको उसने अंगूठी पकड़ाई और मुस्कुरा दिया।
" अरे ई का ले आये, लगता है एक तीर से दो निशाना साध रहे हो तुम", और लजाकर अँगूठी उसने अपनी उंगली में डाल लिया। एक बार चारो तरफ नज़र दौड़ाया सरोज ने और फिर एक बार हाथ हिलाकर चल पड़ी।
" अब कब मिलोगी सरोज ", उसने धीरे से पूछा। जवाब में मुस्कुराकर वो चली गयी। रघुआ ने साइकिल उठाया और घर चल पड़ा, शाम ढल चुकी थी, लोगों के घर लालटेन और बल्ब जल गए थे। घर पर साइकिल खड़ा करके वो दलान में घुसा और तभी बनारसी ने टोक दिया " कहाँ इतनी देर तक घूमत रहे, पढ़ाई लिखाई तो मन लगाकर कर करत हो न आजकल"।
आदतन हूँ कहकर वो घर में घुस गया, कपड़े निकाले और मुँह हाथ धोने लगा। मतारी ने खाने का पूछा तो थोड़ी देर बाद बोलकर अपने खटिया पर बैठ गया। किताब में रखी सरोज की फोटो देखकर वो उसके सपनों में खो गया था, मतारी चूल्हे के पास उसे देखते हुए उसके उज्जवल भविष्य के सपने में खोई थी और दुआरे बनारसी अपने झोलंगी खटिया पर लेटे लेटे अपने खेती और गईया के सपनों में खोया था।
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on February 17, 2016 at 2:29pm

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी 

Comment by TEJ VEER SINGH on February 16, 2016 at 12:48pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by विनय कुमार on February 16, 2016 at 12:40pm

बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी जी 

Comment by विनय कुमार on February 16, 2016 at 12:39pm

बहुत बहुत आभार आ शेख भाई, कृपया टंकण त्रुटियों की ओर इशारा भी कर दें 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2016 at 11:43am

आ0 भाई विनय कुमार जी हर वक्त की युवा होती पीढ़ी का यही हाल होता है । बस यही कहा जा सकता है कि ......इश्क ने निकम्मा कर दिया गालिब..........

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 15, 2016 at 12:54pm
सभईं को उल्लू समझ कैं उल्लू बनावैं..जै वेल-एन्ड-टाईम दिवसवा..
बेहतरीन प्रस्तुति में टंकण त्रुटियां भी बुरी नहीं लगीं। सादर हार्दिक बधाई आपको सुंदर सार्थक संदेश सम्प्रेषित करती रचना के लिए आदरणीय विनय कुमार सिंह जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service