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गिरगिट (लघुकथा )राहिला

"ओह, श्रीमती रोहन आप वाकई बहुत भाग्यशाली हैं । कि आप को रोहन जैसा हंसमुख ,जिंदादिल,स्वतंत्र विचारधारा का धनी पति मिला ।ऑफिस की तो जान है,मजाल जो किसी के चेहरे पर उसके रहते उदासी छा जाये।" रात के खाने पर आमंत्रित उनकी महिला मित्र काफ़ी देर से उनकी शान में कसीदे पढ़े जा रही थी ।
"वैसे बुरा ना मानियेगा, अगर रोहन की शादी ना हुई होती तो उसे किसीभी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देती । आखिर ऐसे इंसान की पत्नी होना अपने आप में गर्व की बात है ।सच कह रही हूं ना! " वो अब मेरी राय जानने के लिये उत्सुकतावश मेरा मुंह ताक रही थी ।
"हां..सही कह रही हो । मैं भी काफ़ी लंबे समय तक उनके साथ काम कर चुकी हूं । और शादी से पहले मेरा भी यही ख्याल था । "रीमा!साड़ी के पल्लू से घरेलू हिंसा के चिन्ह छिपा एक गहरी सांस छोड़,उठते हुये बोली ।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on February 24, 2016 at 11:33am
बहुत आभार आदरणीय सर जी । सादर धन्यवाद

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:42am

बहुत खूबसूरत लघुकथा कही है, सही फरमाया है कि हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होतीI बहुत बहुत बधाई स्वीकर करें राहिला जीI   

Comment by Rahila on December 28, 2015 at 10:33am
हार्दिक आभार आदरणीय सतविन्दर जी! बहुत खुशी हुई कि रचना आपका ध्यान आकर्षित कर पाई । बहुत शुक्रिया तारीफ का । सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2015 at 8:30am
वह्ह्ह्ह्ह्।बेहतरीन भावपूर्ण रचना।हार्दिक बधाई
Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:44pm
आदरणीय डा.आशुतोष सर जी!जीवन में जो चीज बहुत करीब से देखने को मिलती है तो विषय का चुनाव अक्सर उम्दा हो जाता है । दुनिया दोगले लोगों से भरी पड़ी है । आपने रचना का मर्म समझा ,बहुत आभार आपका ।सादर
Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:36pm
आदरणीय सुशील सर जी !बहुत शुक्रिया रचना को वक्त देने और समीक्षा करने के लिये ।बहुत आभार । सादर
Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:33pm
बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता दी!आपने रचना को अपना कीमती वक्त दिया, सराहा मेरा लिखना सफल हुआ । सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2015 at 9:31pm

आदरणीया राहिला जी ..बहुत सुंदर लघु कथा ..सच में दूर के ढोल बड़े सुहाबने लगते हैं आदमी बाहर जब समाज में मिलता है तो बनावटी हो जाता है ..अच्छा बिषय चुना है ..सार्थक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सादर

Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:30pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी! आपको शीर्षक प्रभावशाली लगा, मेरे लिये ये ही बहुत है । आपकी टिप्पणी मेरे लिये बहुत मायने रखती है । दिल से शुक्रिया आपका । सादर
Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:27pm
प्रिय जानकी दी आपके बगैर तो रचना की सार्थकता पर ही शक होने लगता है । आपकी उपस्थिति एहसास कराती है कि लिखना सफल हुआ ।

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