आघात – ( लघुकथा ) –
वर्मा जी ने जीवन भर की क़माई अपने इकलौते बेटे पवन के भविष्य को बनाने में लगा दी!पहले तो मंहंगी से मंहंगी कोचिंग का खर्चा फ़िर आई आई टी की मंहंगी पढाई!तत्पश्चात बेटे की एम बी ए करने की फ़रमाइश ! बची खुची पूंजी बेटे की शादी में खर्च कर दी !सोचा कि और किसके लिये कमाया है!
बेटा पवन नौकरी करने विदेश चला गया!मॉ बाप अकेले!हारी बीमारी कोई पूछने वाला नहीं!तीन साल से न बेटा आया न बहू!शुरू में तो होली दिवाली फ़ोन आजाता था!अब तो वह भी नहीं आता!वर्मा जी जब भी फ़ोन मिलाते जवाब मिलता,"बाबूजी, अभी मैं ज़रूरी मीटिंग में हूं "!
तीन दिन से वर्मा जी की पत्नी अस्पताल में भर्ती थीं!आई सी यू में अंतिम सांसे ले रही रही थीं!डॉ ने ज़वाब दे दिया था!वर्मा जी दिन भर बेटे को फ़ोन मिलाते रहे मगर बात ही नहीं हो पाई!आखिर श्रीमती वर्मा स्वर्ग सिधार गयीं!
सूचना देने हेतु एक बार फ़िर बेटे को फ़ोन मिलाया!
"क्या बाबूजी आप सारे दिन फ़ोन पर पैसे बरबाद करते रहते हो ,मैंने कहा था ना कि व्यस्त हूं, समय मिलते ही कर लूंगा"!
"बेटा तेरी मॉ ..."!
"ओ हो बाबूजी, समझ गया, मॉ को आप समझा नहीं सकते!मुझे यहां मरने तक की फ़ुर्सत नहीं"!
" मगर बेटा ,तेरी मॉ को मरने की फ़ुर्सत मिल गयी और वह समझने समझाने की दुनिंयॉ से बहुत दूर चली गयी "!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी!
जनाब तेजवीर साहिब , हर घर की मंज़र कशी हो गयी , वाह ,.... मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
हार्दिक आभार सतविंदर जी!
आदाब समर कबीर साहब!लघुकथा को पसंद करने हुतु हार्दिक आभार!
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!
हार्दिक आभार आदरणीय राहिला जी!
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