For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काँटे का इंटरव्यू

क्यों भाई काँटे

शरीर ढूँढते रहते हो चुभने के लिए?
पैर से खींचकर निकाले गए
काँटे से मैंने पूछा
बस फैंकने को तत्पर हुई कि
वह बोल उठा
तुम मनुष्यों की
यही तो दिक़्क़त है
अपनी भूलों का दोष
तटस्थों पर मढ़ते आये हो
मैं कहाँ चल कर आया था
तुम्हारे पैरों तक ,चुभने को
मैं नहीं तुम्हारा पैर आकर
चुभा था मुझको
मैँ ध्यान मग्न पड़ा था
कि अचानक एक भारी सा पैर
आकर सीधा धँसा था
मेरे पूरे शरीर पर
उफ्फ वह घुटन भरी पीड़ा
ख़ून का नमकीन स्वाद..उबकाई
तुमने अनुभव किया क्या ?
तुम्हारा बिन्दु भर भाग
और मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व
सोचो पीड़ा का घनत्व
किसका अधिक रहा होगा
बात करते हो................
वह चुप हो गया
मैं अपलक कुछ देर उसे देखती रही
फिर ससम्मान उसे वहीं वापस रख दिया
जहाँ मैं उसे चुभी थी ।
तनूजा उप्रेती ,

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tanuja Upreti on July 15, 2016 at 3:27pm
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार प्रतिभा जी, महर्षी जी एवं बैजनाथ जी।
Comment by maharshi tripathi on June 7, 2016 at 5:33pm
एक अच्छा संदेश देती इस कविता पर ढेरों बधाई आ !!!
Comment by pratibha pande on June 6, 2016 at 12:10pm

,काँटा जब पैर पड़ता है तभी चुभता है ,जानवर भी जब उकसाया जाता है तभी नुक्सान करता है , पूरी सृष्टि में एक मनुष्य ही  है जो बिना उकसाए भी दूसरों को दुःख देता है,   और फिर शिकायत भी करता है ,   सुन्दर सार्थक रचना पर बधाई प्रेषित है आदरणीया तनूजा जी  

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on June 5, 2016 at 6:41pm

आदरणीया तनुजा जी ...................बहुत बढ़िया | बधाई 

Comment by Tanuja Upreti on June 5, 2016 at 6:12pm
धन्यवाद शहजाद जी एवं प्रिय राहिला जी
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 5, 2016 at 4:06pm
आप दोनों की भेंटवार्ता से सबक़ लेते हुए मज़े ले रहा था कि इंटर्व्यू ख़त्म हो गया! मुझे लगा कि उसे दोबारा पीड़ा भोगने का अवसर देने के लिए उसी जगह छोड़ने के बजाए स्मृति चिन्ह की तरह ससम्मान संजो के रखा जाता , तो बेहतर होता। सुंदर भावपूर्ण प्रेरक कसी हुई रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया तनुजा उप्रेती जी।
Comment by Rahila on June 5, 2016 at 3:56pm
हा. .हा. .हा. .बहुत, बहुत खूब, वाह. .बहुत शानदार रचना आदरणीया दीदी! बहुत बधाई । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service