For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़म पे अब कहकहे लगाता हूँ (ग़ज़ल)

2122 1212 22(112)

ग़म पे अब कहकहे लगाता हूँ।
खुद ही अपना मज़ाक उड़ाता हूँ।

अश्क़ आँखों में छलछलाएँ लाख़,
गीत लेकिन ख़ुशी के गाता हूँ।

अब तो बे-नूर इक सितारे सा,
वक़्त बेवक़्त टिमटिमाता हूँ।

वक़्त क्या तोल पाएगा मुझको,
वक़्त का वज़्न मैं बताता हूँ।

बाद मुद्दत के चुक नहीं पाया,
जाने कैसा उधार-खाता हूँ।

मैं हूँ दीनारों की खनक, प्यारे
मैं ही इस दौर का विधाता हूँ।

ठोकरों से करूँ गिला कैसे,
तज्रिबे तो इन्हीं से पाता हूँ।

और हैं काम शाइरी के सिवा,
मैं ये हर वक़्त भूल जाता हूँ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on July 11, 2016 at 8:36pm
ख़ूबसूरत ग़ज़ल... हार्दिक बधाई आपको आदरणीय जयनित भाई. सादर
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 6, 2016 at 10:45pm

ठोकरों से करूँ गिला कैसे,
तज्रिबे तो इन्हीं से पाता हूँ।..........वाह ! बहुत खूब.

खूबसूरत गजल हुई है आदरणीय जयनित जी हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2016 at 8:44pm

ठोकरों से करूँ गिला कैसे,
तज्रिबे तो इन्हीं से पाता हूँ।    --  लाजवाब ! आदरनीय गज़ल भी अच्छी हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Ravi Shukla on July 6, 2016 at 12:05pm

आदरणीय जयनित जी बढि़या गजल हुई है बधाई 

 और हैं काम शाइरी के सिवा,
मैं ये हर वक़्त भूल जाता हूँ।   ये शेर बहुत अच्‍छा लगा 

Comment by Mahendra Kumar on July 6, 2016 at 11:10am
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखी है जयनित भाई! आपको मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाई! ईश्वर करे आप ऐसे ही लिखते रहें, सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service