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ऑफ़िस से आकर सब काम निपटाते -निपटाते थक कर चूर हो गई थी वह. बस! बर्तन जमा कर दूध मे जामन लगाना शेष था.   उसके हाथ तेजी से  प्लेटफार्म साफ़ कर रहे थे.पसीने से तरबतर पीठ  पर पड़ती उसकी नजर भी उसे चुभने लगी थी.
" माँ! रीना-टीनू का समवेत स्वर गूँजा था" किंतु उसने उनकी बात सुने बिना ही चिल्ला कर कहा था
"जब देखो तब माँ-माँ दोने बडे हो गये हो अपने-अपने काम करना कब सिखोगे. जाओ खुद अपना बिस्तर लगाओ और अपना सारा स्टडी टेबल भी समेट के रखना."   
वो शरीर को बस गद्दे पर झोंकना चाहती थी की रोज की दिनचर्या का एक और काम उसने निपटा दिया था वो पीठ घुमाकर सो भी गया था. क्या सारे कर्तव्य बस उसी के है. अब उसकी आँखो से नींद दूर जा चुकी थी. बेचारे बच्चे, सारा क्लेश उन पर उड़ेल दिया कितने मासूम और छोटे है अभी. उसकी नज़रें छत पर टिक  गई जहाँ उसे बस सुराख ही सुराख नजर आ रहे थे.  सारे आँसू तो पहले ही  सूख चुके थे.

 उसे अपनी दुखती गर्दन की याद आ गई. बाम की शीशी ढूँढते-ढूँढते बच्चों के कमरे मे गई. दोनो बस बीना कुछ ओढे ऐसे ही सो गये थे. उनकी मासूमियत पर तरस आ गया . उन्हें चादर ओढाने  झुकी ही थी कि हलचल से  रीना जाग गई  .टीनू ने  बंद मुट्ठी खोलते उसने झंडू बाम की शीशी आगे बढाते  हुए कहा ...

"मम्मा आपकी नेक मे पेन है ना, मैने देख लिया था काम करते-करते आप बार-बार दबा रही थी. मै आया था आपको देने पर आप तब तक अपने  कमरे मे जा चुकि थी. "
दोनो बच्चो के  बाम मलते कोमल हाथो के  स्पर्श से वह अपने अश्रु नहीं रोक पाई, इसका मतलब वह रोना नहीं भुली थी. 
दोनो को बाहो में भर कर सोते हुए डबडबाई आँखे से भी अब छप्पर उसे साफ़ नजर आ रहा था.

 मौलिक एंव अप्रकाशित

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Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 12, 2016 at 1:00pm

आ.सुशील सरणा  जी,आ.राजेन्द्र दुबे जी , आ.विजय निकोरे जी बहुत-बहुत आभार आपका.
आ. नीता दीदी आपकी टिप्पणी ने मन मोह लिया

Comment by vijay nikore on July 10, 2016 at 2:18pm

आपकी यह अति मार्मिक सुन्दर लघुकथा हृदय को छू गई।

हार्दिक बधाई, आदरणीया नयना जी।

Comment by Nita Kasar on July 9, 2016 at 8:38pm
महिला मन की व्यथा को कथा में उँडेल कर रख दिया,बच्चे इतने मासूम है वे माँ की पीड़ा समझते है पर पति वे बड़े है समझदारी की उम्मीद तो उसे करना ही चाहिये ।आखिर कब तक वह अपने आप को तकलीफ़ देती रहेगी बधाई आपको आद० नयना जी ।
Comment by Rajendra kumar dubey on July 8, 2016 at 10:03am
आदरणीय नयना जी बहुत हृदय स्पर्शी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Sushil Sarna on July 7, 2016 at 2:13pm

अादरणीया नयना जी बहुत ही मार्मिक और शीर्षक को सार्थक करती इस लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। इस कथा मेंं ये भाव ''टीनू ने बंद मुट्ठी खोलते उसने झंडू बाम की शीशी आगे बढाते हुए कहा ...'' अत्यंत मार्मिक लगा। इस भाव से अांखों मेंं नमी अा गयी। पुनः हार्दिक बधाई।

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 7, 2016 at 1:53pm

आ.प्रतिभा दीदी एवं आदरणिय शेख साहब आप को अनेकानेक धन्यवाद रचना पर समय देकर सराहने के लिए

Comment by pratibha pande on July 6, 2016 at 7:33pm

सच है,एक स्त्री   बच्चों से मिले प्रेम  में अपना दुःख भूल जाती है,हार्दिक बधाई   

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 6, 2016 at 5:03pm
शीर्षक को परिभाषित व पुष्ट करती बढ़िया भाव पूर्ण रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया नयना (आरती) कानिटकर जी। सारे दायित्व निभाती पत्नी व माँ का दर्द केवल संतान ही कुछ सीमा तक कुछ समय तक समझ पाती है।
// वो पीठ घुमाकर सो भी गया था. क्या सारे कर्तव्य बस उसी के है.// बहुत ख़ूब.

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