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ये माना कि हर सम्त कुछ बेबसी है
मगर हौसलों की बची ज़िन्दगी है
बुझेगी नहीं चाहे आंधी भी आये
ये अंदर से आयी है वो रोशनी है
लकीरें हथेली की सारी थीं झूठी
जो कहती थीं आगे खुशी ही खुशी है
वो भूँके या काटे, डसे आस्तीं को
अगर आदमी था, तो वो आदमी है
बिना ज़हर वाले बने हैं गिज़ा सब
ये क़ीमत चुकाई यहाँ सादगी है
घराना उजालों का था जिनका, उनका
सुना है अँधेरों से भी हमदमी है
ज़रा देखना दौर मुझ तक भी आये
मिजाज़ अपना यारो ज़रा बलगमी है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
लकीरें हथेली की सारी थीं झूठी
जो कहती थीं आगे खुशी ही खुशी है
वाह गज़ब आदरणीय क्या शे'र है मजा आ गया। .... खूबसूरत अशआर और खूबसूरत अहसासों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब।
आदरनीय मनन भाई , उत्साह वर्धन के ल्लिये आपका हृदय से आभार ।
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