For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बिजलियाँ कुछ गिराया करो

212 212 212
रुख से जुल्फें हटाया करों ।
तुम नज़र यूँ ही आया करो ।।

चाँद पर हक़ हमारा भी है ।
अब तो नज़रें मिलाया करो ।।

है अना ही अना चार सू ।
जुल्म इतना न ढाया करो ।।

कर दो आबाद कोई चमन ।
खुशबुओं को लुटाया करो।।

बारहा जिद ये अच्छी नही ।
बात कुछ मान जाया करो ।।

गो ये सच है की मजबूर हूँ ।
आइना मत दिखाया करो ।।

है ज़रूरी तो जाओ मगर ।
वक्त पर लौट आया करो ।।

बेवफा मत कहो तुम उसे ।
साथ तुम भी निभाया करो।।

जिंदगी का भरोसा ही क्या ।
दिल किसी से लगाया करो ।।

सो न जाए कहीं हुस्न ये ।
इश्क को तुम बुलाया करो ।।

जख़्म रोशन रहे उम्र भर ।
बिजलियाँ कुछ गिराया करो ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 527

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 5:09pm

आदरनीय नवीन भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 5:09pm

आदरनीय नवीन भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 11, 2017 at 10:01pm
आ0 मोहम्मद आरिफ साहब शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on January 11, 2017 at 10:00pm
आ0 विजय निकोरे साहब आभार
Comment by Mohammed Arif on January 11, 2017 at 5:36pm
आदरणीय नवीन त्रिपाठीजी,छोटी-सी , नन्ही-सी प्यारी ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक !३
Comment by vijay nikore on January 11, 2017 at 1:29pm

 गज़ल बहुत ही अच्छी लगी। बधाई।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2017 at 10:06pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर सादर आभार सर ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2017 at 10:05pm
आदरणीय कबीर सर नमन सुधार कर लिया है उस सानी मिसरे को बदल चुका हूँ आडिट पोस्ट पड़ी हुई है । तुम नज़र यूं ही आया करो।।
Comment by Samar kabeer on January 10, 2017 at 9:47pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,दिन ब दिन आपकी ग़ज़लों पर निखार आता जा रहा है,जो इस बात की जमानत दे रहा है कि आप मुसलसल मश्क़(अभ्यास)कर रहे हैं,ये एक अच्छा संकेत है ।
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
कुछ बातें इस ग़ज़ल के बारे में साझा करना चाहूँगा वो ये कि मतले के सानी मिसरे में आपने अनजाने में एक ग़लत शब्द ले लिया है,जिसकी वजह से मतला ख़राब हो रहा है,'नज़्र'शब्द को आपने "नज़र"समझ कर इस्तेमाल किया जबकि "नज़्र"शब्द का एक अर्थ है"तोहफा","आपके लिये"इस लिहाज़ से आपको सानी मिसरा बदलना होगा ।
आख़री शैर में 'रहे'को "रहें" कर लें,शैर में ऐब रहा है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2017 at 5:53pm

आदरणीय नवीन मणि जी, आपने छोटी बह्र में बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service