For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल --दर्द की तासीर बन दिल में ठहर जाते हैं लोग

2122 2122 2122 212

इस तरह कुछ जोश में हद से गुज़र जाते हैं लोग।
जुर्म की हर इन्तिहाँ को पार कर जाते हैं लोग ।।

हर तरफ जलते मकाँ है आदमी खामोश है ।
कुछ सुकूँ के वास्ते जाने किधर जाते हैं लोग ।।

अहमियत रिश्तों की मिटती जा रही इस दौर में ।
है कोई शमशान वह अक्सर जिधर जाते हैं लोग ।।

यह शिकन ज़ाहिर न हो चेहरा न हो जाए किताब।
आईने के सामने कितना सवर जाते हैं लोग।।

गाँव खाली हो रहा कुछ रोटियों की फेर में ।
माँ का आँचल छोड़ कर देखो शहर जाते हैं लोग।।

बाप की थीं ख्वाहिशें बेटा निभाए उम्र तक ।
हो बुढ़ापे का तकाजा तो मुकर जाते हैं लोग ।।

देखिये मतलब परस्ती का ज़माना आ गया ।
मांगिये थोड़ी मदद तो खूब डर जाते हैं लोग ।।

कौन कहता दौलतों से वास्ता उनका नहीं ।
कुर्सियो पर बैठकर काफ़ी निखर जाते हैं लोग ।।

ऐ मुसाफिर यह हक़ीक़त भी हमे मालूम है ।
इश्क़ में कुछ ठोकरें खाकर बिखर जाते हैं लोग ।।

बिक गया मजबूरियों के नाम पर वह हुस्न भी ।
घुंघरुओं के बज्म में चारो पहर जाते हैं लोग ।।

भूल जाना भी मुकद्दर का बड़ा तोहफ़ा यहां ।
दर्द की तासीर बन दिल में ठहर जाते हैं लोग ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 677

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:40pm

आदरणीय नवीन भाई , गज़ल बहुत अच्छी हुई है , हृदय से बधाइयाँ  प्रेषित हैं , स्वीकार करें । आदरणीय समर भाई जी की सलाहों पर गौर कीजियेगा ।

Comment by vijay nikore on January 11, 2017 at 1:26pm

आपकी गज़ल पढ़ कर आनन्द आ गया। बधाई।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 9, 2017 at 4:53pm
आ0 कबीर साहब सादर नमन सर । अवश्य सुधार करता हूँ ।
Comment by Samar kabeer on January 9, 2017 at 2:27pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
कुछ मिसरों में टाइपिंग मिस्टेक है उसे दरुस्त कर लें ।
मतले के सानी मिसरे में 'इन्तिहाँ'को "इन्तिहा"करें ।
चौथे शैर में 'सवर' को सँवर"कर लें ।
पांचवें शैर में 'शहर'क़ाफ़िया उर्दू के हिसाब से मान्य नहीं है ।
दसवें शैर में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'बज़्म में',और दूसरी बात ये कि "बज़्म"स्त्रीलिंग है इसलिये 'घुंघरुओं के'नहीं "घुंघरुओं की"होना चाहिये ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 9, 2017 at 7:59am
आदरणीय नवीन जी इस ग़ज़ल को बार बार पढ़ा आपकी ग़ज़ल इंसान के चरित्र का बाखूबी वर्णन है मंत्रमुग्ध करती इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई सादर
Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2017 at 3:47am
आद0 नवीन मणि त्रिपाठी जी सादर अभिवादन, उम्दा ग़ज़ल। पर दाद हाजिर है, दिली मुबारकबाद कबूल फरमाये, सादर
Comment by Naveen Mani Tripathi on January 8, 2017 at 11:13pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब सादर आभार । आपकी बात से सहमत हूँ । शहर को 2 1 पर ही लेना उचित है । पर ग़ज़ल पढ़ने की चीज है जो पढ़ते है वही वजन ले लिया । कुछ हिंदी उच्चारण को घुसपैठ कराने की साजिश थी । सादर नमन ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 8, 2017 at 9:46pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. शहर काफ़िया मुझे व्यक्तिगत रूप से अजीब लगा लेकिन यह बहस पुरानी हो गई है और अब इस शब्द का जैसा प्रयोग आम हो चला है उस हिसाब से सही है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service