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ग़ज़ल- बिजलियाँ कुछ गिराया करो

212 212 212
रुख से जुल्फें हटाया करों ।
तुम नज़र यूँ ही आया करो ।।

चाँद पर हक़ हमारा भी है ।
अब तो नज़रें मिलाया करो ।।

है अना ही अना चार सू ।
जुल्म इतना न ढाया करो ।।

कर दो आबाद कोई चमन ।
खुशबुओं को लुटाया करो।।

बारहा जिद ये अच्छी नही ।
बात कुछ मान जाया करो ।।

गो ये सच है की मजबूर हूँ ।
आइना मत दिखाया करो ।।

है ज़रूरी तो जाओ मगर ।
वक्त पर लौट आया करो ।।

बेवफा मत कहो तुम उसे ।
साथ तुम भी निभाया करो।।

जिंदगी का भरोसा ही क्या ।
दिल किसी से लगाया करो ।।

सो न जाए कहीं हुस्न ये ।
इश्क को तुम बुलाया करो ।।

जख़्म रोशन रहे उम्र भर ।
बिजलियाँ कुछ गिराया करो ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 5:09pm

आदरनीय नवीन भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 5:09pm

आदरनीय नवीन भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 11, 2017 at 10:01pm
आ0 मोहम्मद आरिफ साहब शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on January 11, 2017 at 10:00pm
आ0 विजय निकोरे साहब आभार
Comment by Mohammed Arif on January 11, 2017 at 5:36pm
आदरणीय नवीन त्रिपाठीजी,छोटी-सी , नन्ही-सी प्यारी ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक !३
Comment by vijay nikore on January 11, 2017 at 1:29pm

 गज़ल बहुत ही अच्छी लगी। बधाई।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2017 at 10:06pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर सादर आभार सर ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2017 at 10:05pm
आदरणीय कबीर सर नमन सुधार कर लिया है उस सानी मिसरे को बदल चुका हूँ आडिट पोस्ट पड़ी हुई है । तुम नज़र यूं ही आया करो।।
Comment by Samar kabeer on January 10, 2017 at 9:47pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,दिन ब दिन आपकी ग़ज़लों पर निखार आता जा रहा है,जो इस बात की जमानत दे रहा है कि आप मुसलसल मश्क़(अभ्यास)कर रहे हैं,ये एक अच्छा संकेत है ।
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
कुछ बातें इस ग़ज़ल के बारे में साझा करना चाहूँगा वो ये कि मतले के सानी मिसरे में आपने अनजाने में एक ग़लत शब्द ले लिया है,जिसकी वजह से मतला ख़राब हो रहा है,'नज़्र'शब्द को आपने "नज़र"समझ कर इस्तेमाल किया जबकि "नज़्र"शब्द का एक अर्थ है"तोहफा","आपके लिये"इस लिहाज़ से आपको सानी मिसरा बदलना होगा ।
आख़री शैर में 'रहे'को "रहें" कर लें,शैर में ऐब रहा है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2017 at 5:53pm

आदरणीय नवीन मणि जी, आपने छोटी बह्र में बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

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