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नज़्र ....

सहर हुई
तो ख़बर हुई
शब्
सिर्फ
बातों को
नज़्र हुई
रहते ख़ामोश
नज़रों को
जुबां देते
रात यूँ ही
नज़रों के
दरमियाँ गुज़ार देते
लम्स करते बयाँ
सफर निगाहों का
फिर

न सहर की
खबर होती
न शब्
लफ़्ज़ों को
नज़्र होती

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 650

Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 23, 2017 at 5:32pm

आदरणीय   गिरिराज भंडारी  जी रचना के भावों को मान देने का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 8:25am

आदरणीय सुशील भाई , खूबसूरत कविता हुई है , बधाइयाँ आपको

Comment by Sushil Sarna on February 22, 2017 at 10:32pm

आदरणीय  Mahendra Kumar साहिब प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेह देने का हार्दिक आभार।

Comment by Mahendra Kumar on February 22, 2017 at 9:15pm
आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया कविता लगी आपकी। इस उम्दा रचना के लिए ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Sushil Sarna on February 21, 2017 at 2:10pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला साहिब प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेह देने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 21, 2017 at 2:10pm

आदरणीय narendrasinh chauhan साहिब प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेह देने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 21, 2017 at 2:09pm

आदरणीय Mohammed Arif साहिब प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेह देने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 21, 2017 at 2:08pm

आदरणीय समर कबीर साहिब हमेशा की तरह आपके मधुर शब्दों ने मेरे सृजन का मान बढाया है। तहे दिल से आपके शुक्रिया सर।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 21, 2017 at 12:25pm

सहर का ये तो लाभ है | सुंदर रचना | वाह 

Comment by narendrasinh chauhan on February 20, 2017 at 6:05pm

खूब सुन्दर रचना। .....

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