करेंगें दम से खूब धमाल,
इक दिन आगे पहुंचे ससुराल।
पहली होली संग साली के,
सोच के हो गये गुलाबी गाल।।
हुयी रात जो घोड़े बेचे,
सो गये हम ,चादर को खेंचे।
ले कालौंच,खड़िया और गेरू,
बैठी चौकड़ी,खाट के नीचे।
हो गयी शुरू ,रात से होली ,
इधर अकेले ,उधर हुल्लड़ टोली,
गब्बर सिंह बन,देख के खुद को
भूल गये सब हंसी ठिठोली ।
खूब उड़ा फिर अबीर ,गुलाल
मुंह काला ,अंग पीला लाल,
पकड़ ,पकड़ के ऐसा पोता
उड़ गये तोते देख धमाल।।
कम ना निकला ,छोटा साला,
इक नंबर का खोटा साला।
तोड़ भरोसा ,मिल गया उनमें ,
बिन पैंदी का लोटा साला।।
मान ,मनौअल खिले पकवान,
सेवा में हाज़िर सब शैतान।
नमक मिर्च से भर गिलौरी,
दे गयी साली बना के पान।।
ज्यों ही हमने पान चबाया,
खाया पिया सब बाहर आया ।
थू थू करें,तो कहें साली जी,
कहो जीजाजी मज़ा तो आया।।
छुड़ाने बैठे जो रंग गुलाल,
घिस ,घिस अंग,हुये बेहाल।
ज्यौं शैम्पू बालों पर उढेला
भरा था रंग,फिर हो गये लाल।।
नहा कर जैसे ,बाहर को आये ,
दर्जन भर सालियाँ देख ,घबराये।
छोटी, बड़ी गाँव की पूरी,
ससुरी बैठीं घात लगाये।।
डामर,गोबर ,रंग ,पिचकरी,
लगा गयीं सब बारी,बारी
बना बिजुका ,लगा डिठूला
फिर सिक्कों से नजर उतारी।
धरी रह गयी सब होशियारी
साले ,साली पड़ गये भारी।
गाँव की होली बड़ी जबर
आपबीती ,जनहित में जारी।।
मौलिक एंव अप्रकाशित
Comment
आपबीती ,जनहित में जारी।।// हो ..हो .. ,होली के आठ दिन बाद फिर से भिगो दिया होली के रंग में आप की इस रचना ने ..मजा आ गया पढ़ कर बधाई प्रिय राहिला जी
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