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गहराई में ही जीवित रहता शीतल जल

सश्रम ही पाता तृषित मनुज वह नीर विमल ... ||

गंभीर ज्ञान ज्ञानी का बसता अंतः तल

आता समक्ष जब स्वागत में हों ध्वनि करतल ... ||

ज्ञान अधूरा हो या छिछला - उथला जल

दिखता सुदूर पर प्राप्य सहज, करता मन चंचल ... ||

.

- करीब (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 8, 2017 at 11:34pm
जी अवश्य कोशिश करूँगा। आप जैसे गुरुजनों के सान्निध्य में कुछ तो सीख ही लूँगा। सादर नमस्कार।
Comment by Samar kabeer on August 8, 2017 at 11:12pm
जनाब श्याम किशोर'क़रीब'जी आदाब,इस मंच पर ये सुविधा है कि आप जिस विधा को सीखना चाहें,उसके लिए आलेख मौजूद हैं,अध्यन आपको करना है ।
Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 8, 2017 at 7:07pm
जनाब आरिफ साहब, सादर नमस्कार। क्षमा चाहता हूँ, किंतु मुझे मात्रिक विधान,छंद आदि का कोई ज्ञान नहीं है, बस जो मन में जैसे आता है लिख डालता हूँ।
Comment by Mohammed Arif on August 8, 2017 at 5:28pm
आदरणीय श्याम किशोर जी आदाब, बहुत ही उम्दा प्रस्तुति । आपने जिस विधा में यह रचना लिखी है उसका नाम और मात्रिक विधान नहीं लिखा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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