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इन्तिजार ....

दफ़्न कर दिए
सारे जलजले
दर्द के
इश्क़ की
किताब में

ढूंढती रही
कभी
ख़ुद में तुझको
कभी
ख़ुद में ख़ुद को
मगर
तू था कि बैठा रहा
चश्म-ए -साहिल पर
इक अजनबी बन के

मैं
तैरती रही
एक ख़्वाब सी
तेरे
इश्क़ की
किताब में

राह-ए-उल्फ़त में
दिल को
अजीब सी सौग़ात मिली
स्याह ख़्वाब मिले
मुंतज़िर सी रात मिली
यादों के सैलाब मिले
चश्म को बरसात मिली
भूल गयी ज़िंदगी
जीने का शऊर
लम्स रहे ज़िंदा
लबों को सहरा सी प्यास मिली
खोयी थी तुझमें
तुझसे मिलकर
खोयी हूँ तुझमें
तुझसे बिछुड़कर
दफ़्न कर दिये हैं वो सारे लम्हात
जिनमें जीने के लिए मरी थी मैं
अब जीने के लिए
मैंने
तेरे इश्क़ की
किताब का
वो सफ़ह
हमेशा के लिए हटा दिया
जिसकी पेशानी पे
लिखा था
इन्तिजार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 20, 2018 at 2:00pm

आदरणीय विजय निकोर जी, सादर प्रणाम ... सृजन में निहित भावों को आत्मीय सम्मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 20, 2018 at 2:00pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति के भावों को मान देने एवं अपने अमूल्य सुझाव से सृजन में सुधार हेतु मार्गदर्शन करने का दिल से शुक्रिया। मैं संभोधित सृजन पुनः प्रेषित करता हूँ। आपका तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on April 19, 2018 at 2:42pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कुछ सुझाव हैं :-

'दफन'--"दफ़्न"

'इश्क'---"इश्क़"

'चश्म-ऐ----"चश्म-ए-"

'स्याह से ख़्वाब मिले'--"स्याह ख़्वाब मिले"

'वो सफा'--"वो सफ़ह:"

'इंतिजार'--"इन्तिज़ार"

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:23pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:23pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 19, 2018 at 10:30am

आदरणीय सुशील सरना जी, नमस्कार । खूबसूरत रचना के लिए बधाई ।

Comment by Harash Mahajan on April 18, 2018 at 5:24pm

वाह एक बेहतरीन नज़्म हुई है आदरणीय सुशील सरना जी ।

खूबसूरती से निभाया है सर ।

सादर

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