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गुलज़ार प्यार का

गुलज़ार प्यार का

हर रात  उसी ग़मरात का  ज़िक्र  न  कर

नातुवां  ग़म को अपने  तू  गैरअहम  कर

ज़िन्दगी  में  माना गर्द-ए-सफ़र  है  बहुत

ग़म-ए-पिनहाँ का रोज़ रंज-ओ-ग़म न कर

यूँ खामोश न रह,  उदास और न हो

वादा यह पक्का कि लौट आऊँगा मैं

दिन में  सही या रातों में तुम्हारी.. या

आ कर मुस्कराऊँगा ख़्वाबों में कभी

गालों पर मेरे छुअन तुम्हारी गुलअंदाम

मोहब्बत से तुम्हारी  ज़रखेज़ रहा दिल

“फिर मिलने की” बाकी हो आस  जहाँ

छोड़ जाने का फिर यह इलज़ाम क्यूँ हो

गुलशन की मेरे  गुलशन-आरा रही हो

बिछोह में इश्क  फिर बदनाम क्यूँ हो

प्यार को जिसके मिला हो प्यार तुम्हारा

मोहब्बत में वहाँ कोई मुफ़्लिसी क्यूँ हो

मिलते ही खिल जाती हो देख तब्बसुम मेरा

मैं भी तलबगार हूँ हमेशा खुशी का तुम्हारी

जब तक है तुमको  मुझ पर एतिबार इतना

दिल तेरा मायूस क्यूँ हो, गर्दिशज़द: क्यूँ हो

                       ------

 ---  विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित}

              -----

गुलज़ार         = बाग, वाटिका

ग़मरात          = मुसीबत, कष्ट

नातुवाँ           = अशक्त, निर्बल

ग़ैरअहम कर   = महत्व्हीन

गर्द-ए-सफ़र    = यात्रा की थकान

ग़म-ए-पिनहाँ   = प्रेम की व्यथा

रंज-ओ-गम     = रंज और ग़म

गुलज़ार          = बाग

गुलअंदाम       = फूल जैसा कोमल

ज़रखेज़          = अच्छी उपजाऊ भूमि

गुलशन-आरा  = माली

मुफ़्लिसी         = गरीबी

तब्बसुम          = मुस्कराहट

तलबगार         = अभिलाषी

गर्दिशज़द:      = मुसीबत का मारा, काल चक्र ग्रस्त

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Comment by vijay nikore on May 9, 2018 at 7:44am

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2018 at 6:04am

आ. भाई विजय जी, सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on April 25, 2018 at 2:21pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय आशुतोष जी

Comment by vijay nikore on April 25, 2018 at 2:18pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 23, 2018 at 12:12pm

आदरणीय विजय सर ..आपकी इस रचना के साथ उर्दू के शब्दों के अर्थ से इस दिलकश रचना का लुत्फ़ उठाने के साथ शब्दकोष में बृद्धि का सुअवसर प्राप्त हुआ. रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 21, 2018 at 4:14pm

कठिन शब्दों के अर्थ सहित बेहतरीन  बहुआयामी अर्थ लिए सार्थक रोमांटिक सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब विजय निकोरे साहिब।

Comment by vijay nikore on April 21, 2018 at 12:50pm

आदरणीय भाई समर जी, रचना की सराहना के लिए और मार्ग-दर्शन के लिए दिल से आभार। संशोधन कर दिए हैं ... बहुत-बहुत धन्यवाद।

Comment by Samar kabeer on April 21, 2018 at 10:59am

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत उम्दा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'गमो रंज' की सहीह तरकीब है,"रंज-ओ-ग़म"

'वायदा' कोई शब्द ही नहीं है,सहीह शब्द है "वादा"

'हमेशां' को "हमेशा" कर लें ।

'ऐतबार' को "एतिबार" कर लें ।

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