एक उखड़ा-दुखता रास्ता
(अतुकांत)
कभी बढ़ती, कम न होती दूरी का दुख शामिल
कभी कम होती नज़दीकी का नामंज़ूर आभास
निस्तब्ध हूँ, फड़क रही हैं नाड़ियाँ
देखता हूँ तकलीफ़ भरा बेचैन रास्ता ...
खाली सूनी नज़र से देख रहा है जो कब से
मेरा आना ... मेरा जाना
घूमते-रुकते हताश लौट जाना
कुछ ही देर में फिर चले आना यहाँ
ढूँढने तुमको
तुम्हारा निशां कोई हो यहाँ ...या शायद वहाँ
जाने किस पत्थर के नीचे मिल जाए कोई चिट्ठी
या धुल जाए उभर आए किसी बारिश के बाद
दीवार पर लिखा वह प्यारा परिचित नाम
जो कभी चाकू से खुरच-खुरच कर लिखा था मैंने
या पास आती गूँजती हवा ही साँय-साँय से कह जाए
कानों में कोई तुम्हारा संदेश और ले जाए मेरा पैग़ाम
पर अब कहीं कुछ नहीं अवशेष
अचेतन निष्फल पीड़ा के सिवा...
अँधियारे पीपल के तले हमारा वह मिलन
जानते थे हम पर नहीं मानते थे मन
शीत भरे थर्राते ओठ भी कह न सके
हवाओं की लहरों में काँपती असलियत
वह विदा इस बार विदा न थी, अलविदा थी
जाते-जाते इस पर भी कह दिया तुमने
हमेशा की तरह, "मैं तुम्हें फिर मिलूँगी"
चली गई तुम लेकर पलकों में प्यार मेरा
खड़ा रहा भीड़-में-खोए बच्चे-सा देर तक मैं
..... देखता रहा यह उदास रास्ता
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
"मैं तुम्हें फिर मिलूँगी" यह शब्द प्रिय अमृता प्रीतम जी की ज़मीन से हैं
(पंजाबी में... "मैं तैनु फ़िर मिलांगी")
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आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी
इतना मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई समर जी
आ. भाई विजय जी, बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत सुंदर बहुत प्रभावी, इस कविता की तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास, और ये आपकी कविताएं पढ़कर अक्सर होता है,वाह बहुत ख़ूब, इस बहतरीन प्रस्तुति पर ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
इतनी सुन्दर, इतनी गहन प्रतिक्रिया से मुग्ध हूँ, हृदयतल से आभार आपका, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,
प्रेम रस में डूबी
एक प्रतीक्षा की आहट में
कुछ गलियाँ यूँ भी याद आती है
जैसे कभी भुलाई नहीं जाएगी
सदियाँ कब मौन रहती है
सदियाँ धधकती रहती है
प्रेमाग्नि के विशाल कुंड में
आहुति बनकर सदा प्रेम ही
स्वाह हो जाता है फिर से अमर होने के लिए
न तुम जानते हो न मैं जानती हूँ
न जाने कब से हम एकदूजे को जानते हैं
जब तुम्हारा और मेरा परिचय चंचल नयनों ने करवाया था
आभारी तो सबसे पहले उन नयनों का होना चाहिए
लेकिन यह स्मरण दोनों ही नहीं रहा
देखो बेताबियाँ फिर पीछा कर रही है
तुमने क्या कहा था याद है मुझे
" मैं तुम्हें फिर मिलूँगी ।"
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी
आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण जी
आपका हार्दिक आभार, जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी
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