"आज कुछ बदलाव सा लग रहा है हर बात में, क्या बात है? सब कुछ मेरी पसंद का!"
"ये मत सोचना जानूं कि देश के बदलाव के साथ ख़ुद को बदल रही हूं! दरअसल तुम्हारी गोली मुझे अंदर तक घायल कर गई, कल रात!"
इतना कह कर पत्नि ने शरमाते हुए पति की लिखी नई ग़ज़ल वाली पर्ची उसके सीने वाली बायीं जेब में डाल दी!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना के अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब लक्ष्मण धामी ''मुसाफिर'' साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा।
क्या कहने....कोटि कोटि बधाई आदरणीय .
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, नमस्कार। बहुत ही संक्षिप्त, अर्थपूर्ण व सुन्दर लघुकथा। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बहुत ही संक्षिप्त किंतु सारगर्भित लघुकथा । घायल गोली से ही नहीं दिगर और चीज़ों से भी हुआ जा सकता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बढ़िया लघुकथा, बधाई स्वीकार करें ।
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