स्कूटर फर्राटे से थाने के सामने निकला।यह बात थाने को नागवार गुजरी।एक सिपाही ने हाथ दिया।स्कूटर रुक गया।उसने थाने के कंपाउंड में चलने का इशारा किया।अब स्कूटर थाने के मेन गेट पर खड़े इंचार्ज के सामने खड़ा था।सवार बगल में थे।इंचार्ज ने गाड़ी के कागज की माँग की,जो दिखा दिए गए।उसे गाड़ी का नंबर पढ़ने में दिक्कत हो रही थी।बार बार बताने के बावजूद वह अटक रहा था।अंत में स्कूटर सवार बुजुर्ग ने ध्यान दिलाया कि नंबर तो ठीक ही लिखा हुआ है।हाँ, लिखावट थोड़ी फीकी हो गयी है।लजाया-सा इंचार्ज झिझक भरे लहजे में बोला,'हाँ हाँ, है।ललटेन लगा लीजिये।'अंदर से क्रुद्ध बुजुर्ग ने अपने हाथ में लटके चश्मे की तरफ देखा और बिना कुछ कहे उसे आँखों पर चढ़ा चलते बने।स्कूटर चलानेवाले युवक ने कहा,'मार खा गए दारोगा जी।इसीलिए झुँझला रहे थे।'
-वो कैसे?
-वसंतपंचमी की वसूली जो नहीं हुई।'
-अच्छा,तो ये बात है।हाहाहा...।
-समझा होगा बच्चा ड्राइव कर रहा है।लाइसेंस वगैरह तो होगा नहीं।मछली फँसी जैसे।' युवक ने कहा।
-ओहो!',बुजुर्ग ने गहरी साँस ली।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय तेजवीर जी, शुक्रिया।
जनाब मनन साहिब ,अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
लघुकथा में कटाक्ष अच्छा है।अच्छी रचना के किए बधाई।
आदरणीय समर जी ,नमन व आभार।
आपका आभारी हूँ आदरणीया राहिला जी।
वाह... बहुत सटीक रचना । आजकल की व्यवस्था पर खूब तंज करती हुई। बधाई स्वीकार करें
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा, बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया बबीता गुप्ता जी, शुक्रिया।
आदरणीया नीलम जी, आपका आभार।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपका आभार।
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