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प्रजातंत्र(लघुकथा)


'एक सेठ के पाँच पुत्र थे, दो खूब पढ़े-लिखे,एक कुछ-कुछ पढ़ा हुआ और शेष दो के लिए काला अक्षर भैंस बराबर था।सेठ के मरते समय की बात के अनुसार घर की मिल्कियत(मालिकाना हक) साल भर के लिए पाँचों भाइयों में से सर्वसम्मति से या बहुमत से चुने हुए एक भाई को सौंप दी जाती।वह घर का कामकाज देखता,अपने हिसाब से विभिन्न मदों में धन खर्च करता।कभी पहला पढ़ा-लिखा भाई मालिक होता,तो कभी दूसरा।बीच-बीच में तीसरा कम पढ़ा लिखा भी मालिक बन जाता,अन्य दो अँगूठाछाप भाइयों की मदद से।पर उसकी कुछ चल नहीं पाती।ढुलमुल रवैये और अनिर्णय की स्थिति रहती,समय यूँ ही निकल जाता।हाँ, दोनों पढ़े लिखों में पहला कमाऊ के साथ बटोरू भी था।वह धन खूब जमा कर लेता,कुछ जरूरी खर्चों में कटौती कर भी।फिर मिल्कियत उससे छोटे के हाथ आ जाती।वह खूब बेपरवाही से धन खर्च करता,कर्ज भी उठा लेता।और फिर.....कमाऊ-बटोरू की बारी आती ,और फिर वही मालिक बदलौअल का क्रम जारी रहता',बाबा ने कथा समाप्त की।
-तो बाबा!यह तो वही बात हुई न,कि दिन भर चले अढ़ाई कोस।
-चले कहाँ रे बुरबक?बैठे- बैठे घिसटते रहे,ऐसा कहो न।
-जी बाबा,सही बोले।पर दिवंगत सेठ की आत्मा तो कचोटती होगी न?
-हाँ,पर घर में प्रजातंत्र पैठ जमा चुका था न?'कहते हुए बाबा चल पड़े।
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 13, 2018 at 5:34pm

बहुत ही बढ़िया सांकेतिक लघुकथा लिखी है आदरणीय...

Comment by Neelam Upadhyaya on July 9, 2018 at 1:32pm

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, नमस्कार ।  अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई । 

Comment by babitagupta on July 8, 2018 at 5:24pm

बेहतरीन लघु कथा ,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिय्र्गा आदरणीय सरजी।

Comment by Samar kabeer on July 8, 2018 at 3:03pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Manan Kumar singh on July 8, 2018 at 10:56am

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शहजाद जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 8, 2018 at 10:36am

बहुत बढ़िया पेशकश। हार्दिक बधाई जनाब मनन कुमार सिंह साहिब।

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