For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 1222 122
बहुत से लोग बेेेघरर  हो  गए  हैं ।
सुना   हालात  बदतर  हो  गए  हैं ।।

मुहब्बत उग नहीं सकती यहां पर ।
हमारे   खेत  बंजर   हो  गए   हैं ।।

पता हनुमान  की  है  जात जिनको।
सियासत  के  सिकन्दर हो गए हैं ।।

यहां  हर  शख्स   दंगाई   है  यारो ।
सभी के  पास  ख़ंजर  हो  गए  हैं ।।

सलीका ही नहीं चलने का जिनको ।
वही  भारत के  रहबर  हो गए  हैं ।।

लुटेरे  मुल्क़   में  बेख़ौफ़  हैं   अब ।
बदन पर सब के खद्दर  हो  गए हैं ।।

मेरा धन लूटकर देते जो तुमको ।
वही  हाकिम  मुकर्रर  हो   गए  हैं ।।

करप्शन   की  सुनामी  देखिए  तो ।
नदी   नाले   समंदर   हो   गए  हैं ।।

कलम  यूँ  ही उगलती आग कब है ।
मुझे  भी  गम  मयस्सर  हो  गए हैं ।।

अदालत में  तो उसकी  हार तय है ।
तुम्हारे  साथ अफ़सर  हो  गए  हैं ।।

       डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
      मौलिक अप्रकाशित






Views: 459

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 2:46pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय त्रिपाठी जी..सादर

Comment by राज़ नवादवी on December 30, 2018 at 6:18pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दिली मुबारकबाद. सादर. 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 30, 2018 at 12:16am

आ0 गुरुदेव समर कबीर सर ग़ज़ल तक आने के लिए तहे दिल से शुक्रियः । सादर नमन ।

Comment by Samar kabeer on December 29, 2018 at 10:58pm

अब ठीक है ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 10:55pm

आ0 कबीर सर सादर नमन । बिल्कुल सही कहा आपने जल्दबाजी में गलती हो गयी है ठीक करता हूँ 

बहुत से लोग बेघर हो गए हैं ।

सुना हालात बदतर हो गए है।।

दूसरा 

मेरा धन लूटकर देते जो तुमको।

वही हाकिम मुकर्रर हो गए हैं ।।

Comment by Samar kabeer on December 29, 2018 at 10:01pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में "तर" की क़ैद हो गई है,कोई एक मिसरे का क़ाफ़िया बदलें ।

सलीका ही नहीं चलने का जिसको

इस मिसरे में 'जिसको' शब्द को "जिनको" कर लें ।

' जो  हमको  चूस कर देते हैं तुमको ।
वही  हाकिम  मुकर्रर  हो   गए  हैं'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,क्या चूस कर किसको देते हैं?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
yesterday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service