For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा

2122 1122 1122 22

पूछ मुझसे न सरे बज़्म यहाँ क्या होग़ा ।
महफ़िले इश्क़ में अब हुस्न को सज़दा होगा ।।

बाद मुद्दत के दिखा चाँद ज़मीं पर कोई ।
आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा ।।

वो जो बेचैन  सा दिखता था यहां कुछ दिन से ।
जेहन में अक्स  तेरा बारहा उभरा होगा ।।

रोशनी कुछ तो दरीचों से निकल आयी जब ।
तज्रिबा कहता है वो चाँद का टुकड़ा होगा ।।

पढ़ गया होगा कोई इश्क़ की फितरत तेरी ।
हाल रह रह के कई बार जो पूछा होगा ।।

हिचकियाँ याद की गहराइयों से वाक़िफ़ थीं ।
हो न हो उसने मुझे दिल से पुकारा होगा ।।

मेरे आने की खबर पा के यकीनन उसने ।
गेसुओं को भी तो शिद्दत से सँवारा होगा ।।

वक्त करता ही नहीं रहम किसी पर सुन ले ।
गर ढला हुस्न जरा सोच तेरा क्या होगा ।।

अब मनाने की ज़रूरत भी नहीं है  उसको ।।
थोड़ा  धीरे  ही सही काम तो अच्छा होगा ।।


भूल पाएंगे वफाओं को भला वो कैसे ।
जिक्र उनसे तो मेरा शह्र भी करता होगा ।।

मेरे दिल पे ही न इल्ज़ाम लगाया जाए ।
कुछ तो नजरों से  किया  उसने इशारा होगा ।।

        डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
            मौलिक अप्रकाशित
 







































Views: 537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 2:54pm

वाह जी वाह आदरणीय बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है...

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 3, 2019 at 10:40am

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 3, 2019 at 10:39am

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ हार्दिक आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 2, 2019 at 7:44pm

बेहतरीन गज़ल। हार्दिक बधाई ।

बाद मुद्दत के दिखा चाँद ज़मीं पर कोई ।
आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा ।।

Comment by Samar kabeer on January 1, 2019 at 9:28pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

जेहन में अक्स  तेरा बारहा उभरा होगा'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'ज़ह्न में उसके तेरा अक्स ही उभरा होगा'

रोशनी कुछ तो दरीचों से निकल आयी जब ।
तज्रिबा कहता है वो चाँद का टुकड़ा होगा'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'रोशनी सी जो दरीचे में नज़र आती है'

' पढ़ गया होगा कोई इश्क़ की फितरत तेरी ।
हाल रह रह के कई बार जो पूछा होगा

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर भी है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'जानता होगा तेते हुस्न की फ़ितरत वो सनम'

' अब मनाने की ज़रूरत भी नहीं है  उसको ।।
थोड़ा  धीरे  ही सही काम तो अच्छा होगा'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,क्या कहना चाहते हैं?

बाक़ी शुभ शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service