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आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा

2122 1122 1122 22

पूछ मुझसे न सरे बज़्म यहाँ क्या होग़ा ।
महफ़िले इश्क़ में अब हुस्न को सज़दा होगा ।।

बाद मुद्दत के दिखा चाँद ज़मीं पर कोई ।
आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा ।।

वो जो बेचैन  सा दिखता था यहां कुछ दिन से ।
जेहन में अक्स  तेरा बारहा उभरा होगा ।।

रोशनी कुछ तो दरीचों से निकल आयी जब ।
तज्रिबा कहता है वो चाँद का टुकड़ा होगा ।।

पढ़ गया होगा कोई इश्क़ की फितरत तेरी ।
हाल रह रह के कई बार जो पूछा होगा ।।

हिचकियाँ याद की गहराइयों से वाक़िफ़ थीं ।
हो न हो उसने मुझे दिल से पुकारा होगा ।।

मेरे आने की खबर पा के यकीनन उसने ।
गेसुओं को भी तो शिद्दत से सँवारा होगा ।।

वक्त करता ही नहीं रहम किसी पर सुन ले ।
गर ढला हुस्न जरा सोच तेरा क्या होगा ।।

अब मनाने की ज़रूरत भी नहीं है  उसको ।।
थोड़ा  धीरे  ही सही काम तो अच्छा होगा ।।


भूल पाएंगे वफाओं को भला वो कैसे ।
जिक्र उनसे तो मेरा शह्र भी करता होगा ।।

मेरे दिल पे ही न इल्ज़ाम लगाया जाए ।
कुछ तो नजरों से  किया  उसने इशारा होगा ।।

        डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
            मौलिक अप्रकाशित
 







































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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 2:54pm

वाह जी वाह आदरणीय बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है...

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 3, 2019 at 10:40am

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 3, 2019 at 10:39am

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ हार्दिक आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 2, 2019 at 7:44pm

बेहतरीन गज़ल। हार्दिक बधाई ।

बाद मुद्दत के दिखा चाँद ज़मीं पर कोई ।
आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा ।।

Comment by Samar kabeer on January 1, 2019 at 9:28pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

जेहन में अक्स  तेरा बारहा उभरा होगा'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'ज़ह्न में उसके तेरा अक्स ही उभरा होगा'

रोशनी कुछ तो दरीचों से निकल आयी जब ।
तज्रिबा कहता है वो चाँद का टुकड़ा होगा'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'रोशनी सी जो दरीचे में नज़र आती है'

' पढ़ गया होगा कोई इश्क़ की फितरत तेरी ।
हाल रह रह के कई बार जो पूछा होगा

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर भी है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'जानता होगा तेते हुस्न की फ़ितरत वो सनम'

' अब मनाने की ज़रूरत भी नहीं है  उसको ।।
थोड़ा  धीरे  ही सही काम तो अच्छा होगा'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,क्या कहना चाहते हैं?

बाक़ी शुभ शुभ

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