1-
उसके कारण तन में प्राण।
वही करे मेरा कल्याण।
खान गुणों की जैसे यक्ष।
क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।
2-
वह तो मेरा जीवन दाता।
हर धड़कन से उससे नाता।
है वह ईश्वर के समकक्ष।
क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।
3-
उसके कारण ही दिल धड़के।
सर्वाधिक प्रिय लगता तड़के।
जीवन का वह रक्षति रक्ष।
क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।
4-
बचपन से वह मेरे संग।
सुंदर है उसका हर अंग।
मनभावन वह लगे अधेड़।
क्या सखि साजन ? ना सखि पेड़।।
5-
वह तो है मेरा मनमीत।
झूम-झूम वह गाता गीत।
छप्पन इंची उसका वक्ष।
क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब।
हार्दिक आभार आदरणीय ब्रज जी।
वाह सुन्दर सृजन आदरणीय...
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी,सुंदर प्रस्तुति हेतु,बधाई स्वीकार करें ।
बेहतरीन महत्वपूर्ण विधा सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव साहिब।
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