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उद्मम करते जो सदा
कर्मनिष्ठ , मतिधीर
वे सम्पन्न समाज की 
रखते नींव , प्रवीर

श्रमेव जयते में सदा
जिनका है विश्वास
उनके ही श्रम विन्दु से 
ले वसुन्धरा श्वास

मेहनत भी एक साधना
नहीं कोई यह भोग
लक्ष्य केन्द्रित वृत्ति ही
बन जाए फिर योग

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Usha Awasthi on August 10, 2019 at 12:23pm

प्रोत्साहन हेतु आप सबका आभार।

Comment by Samar kabeer on August 8, 2019 at 3:55pm

मुहतरमा ऊषा जी आदाब,दोहों का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

अंतिम दोहे की पहली पंक्ति की मात्रा एक बार गिन लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2019 at 4:55pm

आदरणीय ऊषा जी, सुंदर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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