For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़़ज़़ल- फोकट में एक रोज की छुट्टी चली गई

बह्र - मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन
221 2121 1221 212

अन्धों के गांव में भी कई बार ख्वामखाह
करती है रोज रोज वो ऋंगार ख्वामखाह

रिश्ता नहीं है कोई भी उससे तो दूर तक
मुजरिम का बन गया है तरफदार ख्वामखाह

फोकट में एक रोज की छुट्टी चली गई
इतवार को ही पड़ गया त्यौहार ख्वामखाह

नाटक में चाहते थे मिले राम ही का रोल
रावण का मत्थे मढ़ गया किरदार ख्वामखाह

ये बुद्ध की कबीर की चिश्ती की है जमीन
फिर आप भाँजते हैं क्यूँ तलवार ख्वामखाह

खबरे बढ़ा चढ़ा के दिखाना है इनका काम
तिल का बना दें ताड़ ये अखबार ख्वामखाह

खारों से मेरी कोई अदावत न थी मगर
पैरों मे चुभ गये हैं मेरे खार ख्वामखाह

मौलिक अप्रकाशित अप्रसारित

Views: 927

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 26, 2020 at 4:25pm

आदरणीय समर कबीर साहब.आदाब। सटीक टिप्पपणी के लिए आभार। जनाब अमीरुद्दीन खान साहब के अनुसार खामखा रदीफ में ले सकते हैं?

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 26, 2020 at 4:21pm

आदरणीय अमीरुद्दीन खान साहब आदाब। खामखा के कई शब्द नेट पर होने से मुझे भ्रम हो गया था। आपने खाम ख्वाह बताकर कृपा की धन्यवाद।

गया में य का वज्न गिरा देने से मेरे विचार से 11 गणना की जानी चाहिए।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 26, 2020 at 4:00pm
  • आदरणीय विनय कुमार जी शेर की तारीफ करने एवं हौसलाअफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on May 26, 2020 at 2:45pm

जनाब राम अवध जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन रदीफ़ ग़लत हो गई वज़्न के लिहाज़ से,सहीह शब्द "ख़्वाह मख़्वाह'21121,इस शब्द को 'ख़ाह मख़ाह' भी लिख सकते हैं,कुछ मिसरों के अंत में एक साकिन की छूट इस बह्र में सहीह है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 26, 2020 at 1:02pm

जनाब राम अवध विश्वकर्मा जी, आदाब। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें।

कुछ कमियों की तरफ़ जो क़ाबिल ए मरम्मत हैं, आप को तवज्जो दिलाना चाहूंगा। 

रदीफ़ में जो लफ़्ज़ लिया गया है उस का सहीह हिज्जे 'ख़ामख़्वाह' है ये लफ़्ज़ फ़ारसी ज़बान से अख़्ज़ किया गया है। इस के इलावा 

इस लफ़्ज़ की वजह से और दो जगह और कुल दस जगह ग़ज़ल में साकिन की छूट ली गयी है जो मुनासिब नहीं है। ध्यान रहे ये छूट है नियम नहीं है। 

उर्दू ज़बान में इस लफ़्ज़ का मुख़फ़्फ़िफ़ लफ़्ज़ ख़ामख़ा भी है जिस के इस्तेमाल से आप आठ जगह छूट लेने से बच सकते हैं। 

इतवार को ही पड़ गया त्यौहार ख्वामखाह.   और 

रावण का मत्थे मढ़ गया किरदार ख्वामखाह   ये दोनों मिसरे बह्र में नहीं हैं, इन मिसरों में शामिल लफ़्ज़ 'गया' को 1 1 पर नहीं ले सकते हैं। सादर। 

Comment by विनय कुमार on May 26, 2020 at 12:11pm

//ये बुद्ध की कबीर की चिश्ती की है जमीन
फिर आप भाँजते हैं क्यूँ तलवार ख्वामखाह//, लाजवाब शेर है, बहुत बहुत बधाई आ राम अवध विश्वकर्मा जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service