बह्र - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
कोई बतलाये कहाँ गायब हुआ है इन्किलाब
एक वो भी वक्त था तनकर चला करता था वो
एक ये भी वक्त आया है छुपा है इन्किलाब
खूबसूरत आज दुनिया बन गई है कत्लगाह
जालिमों से मिल गया है अब सुना है इन्किलाब
है अगर जिन्दा तो आता क्यों नहीं वो सामने
ऐसा लगता है कि शायद मर चुका है इन्किलाब
लोग कहते हैं गलतफहमी है ऐसा है नहीं
आज भी बहुतों के सीने में है जिन्दा इन्किलाब
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी। सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर टिप्पणी एवं उत्साह वर्धन के लिए हृदय से आभार
आदर्णीय तेजवीर सिंह जी नमस्कार। ग़ज़ल पर टिप्पणी करने एवं उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय समर कबीर साहब ग़ज़ल पर टिप्पणी करने, उत्साह बढ़ाने एवं सुझाव के लिए तहे दिल से शुक्रिया। मैं हिन्दी भाषी हूं। हिन्दी वर्णमाला में आज भी नुक्ता वाले अक्षर नहीं हैं। मैंने आम बोलचाल में आने वाले शब्दों का इस्तेमाल किया है। उर्दू के हिसाब से नुक्ता लगाना चाहिए ये सच है। लेकिन यह भी सच है कि उर्दू में "ज" के लिए उच्चारण के अनुसार कई अक्षर हैं। क्या "ज" के नीचे एक नुक्ता लगाने से सभी "ज" को रिप्रेजेंट किया जा सकता है या हिन्दी में उतने ही "ज" के अक्षर बनाने पड़ेंगे जितने उर्दू में हैं। इस हिसाब से पहले उर्दू सीखें फिर शायरी की जाये।
इन्किलाब की याद दिलाने के लिए राम अवध जी बहुत बहुत धन्यवाद एवं बधाई।
आदरणीय राम अवध जी नमस्कार, बहुत अच्छी ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें।
आद0 राम अवध जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही गया आपने। बधाई स्वीकार कीजिये
हार्दिक बधाई आदरणीय राम अवध जी। बेहतरीन गज़ल।
खूबसूरत आज दुनिया बन गई है कत्लगाह
जालिमों से मिल गया है अब सुना है इन्किलाब
जनाब राम अवध जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
उर्दू शब्दों में नुक़्ते लगा लें तो बहतर होगा ।
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