For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिना दिल के ......

लहरों से टकराती
हवाओं से उलझती कश्ती को
आख़िरकार
किनारा मिल ही गया
मगर
अभी तो उसे जीना था
वो समंदर
ज़िंदा थीं जिसमें
उसकी बेशुमार ख्वाहिशें
उसके साथ जीने की
लगता था
उसके बिना
रेतीले किनारों पर
मेरा बदन मृत सा पड़ा जी रहा था
इस आस में
कि मेरा समंदर
मुझे नहीं छोड़ेगा
इन रेतीले किनारों में
दफन होने के लिए
वो जानता है
बिना दिल के भी
कहीं ज़िस्म जीता है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 465

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 13, 2020 at 8:30pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2020 at 10:06am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on September 11, 2020 at 5:25pm
आदरणीय आशीष जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है
Comment by Sushil Sarna on September 11, 2020 at 5:24pm
आदरणीय हर्ष जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार
Comment by Sushil Sarna on September 11, 2020 at 5:23pm
आदरणीय समर कबीर जी, आदाब, सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है । रेतीले /रेतीली टंकण त्रुटि है अभी संशोधित कर पुन: प्रेषित कर दूंगा ।प्रथम बंशी है ।हार्दिक आभार आदरणीय
Comment by आशीष यादव on September 10, 2020 at 10:52pm

आदरणीय श्री सुशील सरना जी अच्छी रचना हुई है। बधाई स्वीकार कीजिये। 

Comment by Harash Mahajan on September 10, 2020 at 8:24pm

आदरणीय ज़नाब सरना जी बहुत ही सुंदर सृजन ।

वो जानता है
"बिना दिल के भी
कहीं ज़िस्म जीता है"

वाह ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on September 10, 2020 at 3:54pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कुछ वाक्य विन्यास की ग़लतियाँ देखें:-

'वो समंदर 
ज़िंदा थीं जिसमें'--"वो समंदर ज़िंदा था जिसमें"

'रेतीली किनारों पर'--"रेतीले किनारों पर"

'इन रेतीली किनारों में'--"इन रेतीलेे किनारों में"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service