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साल बारह का अब है हुआ ओबीओ
उम्र तरुणाई की पा गया ओबीओ
शाइरी गीत कविता कहानी ग़ज़ल
के अमिय नीर का है पता ओबीओ
संस्कार औ अदब का यहाँ मोल है
लेखनी के नियम पर टिका ओबीओ
गर है साहित्य संसार का आइना
तब तो दर्पण ही है दुनिया का ओबीओ
सीखने व सिखाने की है झील तू
ये भी पंकज तुझी में खिला ओबीओ
मौलिक अप्रकाशित
Comment
वाह वाह वाह आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई। हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर भावनाएं प्रेषित कीं आदरणीय पंकज जी आपने
यह मंच विलक्षण है यहाँ की परिपाटी विलक्षण है और ये सुन्दर भाव गंगा भी विलक्षण है
प्रणाम स्वीकार करें
अग्रज को सादर प्रणाम निवेदित है, इस रचना को आपका आशीर्वाद मिला, सादर आभार। सुझाव अवश्य मान्य होगा।
आदरणीय पंकज जी, इस अभिनव मंच, ओबीओ, के बारहवें वर्ष में प्रवेश करने के शुभ अवसर पर आपको हार्दिक बधाइयाँ.
हिंदी के शब्दों को बरतने में इजाफत प्रयुक्त नहीं होता.
हालाँकि, हिंदी के पुराने लेखकों, जैसे कि राधा राधिका रमण सिंह जैसों ने, ऐसे कुछ प्रयोग किये थे. और, अनुप्रास अलंकार का चामत्कारिक बहाव रोचक भी लगता है. किंतु बाद में भाषा के मूर्धन्य विद्वानों ने ऐसे प्रयोगों को अमान्य कर दिया.
शुभ-शुभ
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम
होना शाइरी ही था, टाइपिंग में ग़ल्ती हुई।
प्रिय अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा ख़ुश रहो, ओबीओ की बारहवीं सालगिरह पर आपका तुहफ़ा पसंद आया , बधाई स्वीकार करें I
'शायरी गीत कविता कहानी ग़ज़ल'
इस मिसरे में 'शायरी' को "शाइरी" कर लें I
'संस्कार-ओ-अदब का यहाँ मोल है'
इस मिसरे में 'संस्कार' हिन्दी भाषा का शब्द है इसलिए इज़ाफ़त का इस्तेमाल उचित नहीं' मिसरा बदलने का प्रयास करें I
'ग़र है साहित्य संसार का आइना'
इस मिसरे में 'ग़र' को "गर" कर लें I
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