साहित्य साधना इष्ट आराधना
पवित्रतम ह्रदय निस्सृत पूजा है,
निर्मल निर्झर भाव सरिता ये
उद्गम अन्तः मन जिसका है,
एक अनंत सागर है यह तो
जिसकी हर एक लहर में नशा है...
जो इसकी पूजा करते हैं
अन्तः से निर्मल होते हैं,
सुरसति के आशीष में डूबे
वो सच का दर्पण होते हैं,
धन मान का लोभ न रख कर
दुर्लभ चिदानंद बसते हैं…
पर समाज की तंग हैं गलियाँ
इन में छल और मोह बसा है,
झूठी शानो चमक में उलझ कर
साहित्य का देखो दम निकला है,
हस्त गलत साहित्य की डोरी
पथ प्रदर्शक यहाँ सुप्त खड़ा है...
कलम की ताकत बहुत बड़ी है
इसको रे लेखक पहचानो,
बस कुछ भावों की तुकबंदी
में न इसके सार को जानो,
राह कठिन है , लक्ष्य बड़ा है
अपनी ज़िम्मेदारी मानो...
नव्युदितों को राह दिखाने
तुम्हे ही आगे आना होगा,
गलत हस्त में डोर हो जब तो
लोगों को चेताना होगा,
दिशा भ्रमित हों मूल्य जहाँ भी
तुमको अलख जगाना होगा…
Comment
आदरणीय अशोक रकताले जी, इस रचना को सराहने के लिए हार्दिक आभार I चिदानंद दुर्लभ तभी तो है.... क्योंकि धन-मान का लोभ नहीं जाता... और जिसने इस लोभ पर विजय हासिल कर ली, उसको लिए तो आनंद ही आनंद.
डॉ. प्राची जी
सादर,
जो इसकी पूजा करते हैं
अन्तः से निर्मल होते हैं,
सुरसति के आशीष में डूबे
वो सच का दर्पण होते हैं,
धन मान का लोभ न रख कर
दुर्लभ चिदानंद बसते हैं…
बहुत बढ़िया आव्हान आपका. सच है हम कहते हैं की सत्तर के दशक की फिल्मे अच्छी थी कहीं यही साहित्य के लिए भी काल वर्ष कहे जाने लगे तो समझो सारा लेखन निरर्थक ही रहा. किन्तु छोटा बड़ा, धन मान का लोभ मन से जाता कहाँ है.बधाई.
हार्दिक आभार रोहित दूबे जी
Bahu umda rachna...........mujh jaise ke liye seekhne yogya!
नव्युदितों को राह दिखाने
तुम्हे ही आगे आना होगा,
गलत हस्त में डोर हो जब तो
लोगों को चेताना होगा,
दिशा भ्रमित हों मूल्य जहाँ भी
तुमको अलख जगाना होगा..
डॉ प्राची जी बहुत ही सुंदर पंक्तियों से सजाया है इस कविता को । सुंदर भाव समेटे इस कृति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !
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