यह जो शहरीकरण हो रहा बाबाजी
हरियाली का हरण हो रहा बाबाजी
चीलें, कौए, चिड़ियाँ, तोते, तीतर संग
वनजीवन का मरण हो रहा बाबाजी
भौतिक सुविधाओं को तो विस्तार मिला
संकुचित पर्यावरण हो रहा बाबाजी
पेड़ काट कर, मानव मानो अपनी ही
हत्या का उपकरण हो रहा बाबाजी
इसका दुष्परिणाम देखिये घर-घर में
रोगों का अवतरण हो रहा बाबाजी
ख़बरदार ! कुदरत का क्रोध रुला देगा
उसके विरुद्ध आचरण हो रहा बाबाजी
तुम मेरी आँखों से देखो "अलबेला"
सकल सृष्टि का क्षरण हो रहा बाबाजी
JAI HIND !
Comment
पेड़ काट कर, मानव मानो अपनी ही
हत्या का उपकरण हो रहा बाबाजी
इसका दुष्परिणाम देखिये घर-घर में
रोगों का अवतरण हो रहा बाबाजी
albela ji aapki ghazal ke liye bahut badhai
aur ek acchi udaharan ko darshati hui is rachna ke liye saadhuvad
धन्यवाद रेखा जोशी जी.............हार्दिक हार्दिक आभार आपकी सराहना के लिए
बन्धुवर उमाशंकर मिश्रा जी, आपके शब्दों ने बड़ा उत्साह दिया है .
आभार.........दिली शुक्रिया
अत्यंत जागरूकता भरा काव्य
एक बहुत ही जरुरी अभियान को पंख लगाती कविता
पूरी दुनिया को सीख देती है ,कटु सत्य परन्तु पूरी दुनिया पर व्यंग करती रचना
भाई अलबेला जी हार्दिक स्नेह युक्त बधाई
Albela ji ,
पेड़ काट कर, मानव मानो अपनी ही
हत्या का उपकरण हो रहा बाबाजी ,baba ji bahut khub likha hae ,badhai
आपकी बधाई सहेज ली है राजेश कुमारी जी
धन्यवाद ......
आभार इस प्रोत्साहन के लिए
यह भी शानदार जानदार पीस है बाबाजी ...बहुत बहुत बधाई
aapka dhnyavaad Pradeep Kumar Singh Kushwaha ji.........
शाश्वत मूल्यों का क्षरण हो रहा बाबा जी.
बधाई.
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