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शहरों में घर रूम रूम के बाबाजी

सावन आया झूम झूम के बाबाजी
बजे  नगाड़े  धूम धूम  के बाबाजी

छोरे ने छोरी के गाल भिगो डाले
चूम चूम के, चूम चूम के बाबाजी

घाट घाट का पानी पीने वालों ने
कपड़े पहने लूम लूम के बाबाजी

आँगन,वेह्ड़ा और वरांडा मत ढूंढो
शहरों में घर रूम रूम के बाबाजी

अलबेला को ओबीओ से इश्क़ हुआ
कहदो सबको घूम घूम के बाबाजी

-अलबेला खत्री

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Comment

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Comment by Albela Khatri on July 11, 2012 at 11:35am

kamaal hai.........sabhi ko pata chal chuka ?

maine to kisi ko bataya hio nahin.........

___kya ye raaz aapne khol diya Rajesh Kumari ji ?

Comment by Albela Khatri on July 11, 2012 at 11:33am

aapko khushi hui ye jaan kar mujhe aur zyada khushi hui bhai arun ji..............


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 11, 2012 at 11:28am

अलबेला को ओबीओ से इश्क़ हुआ 
कहदो सबको घूम घूम के बाबाजी ----सभी को पता चल चुका है 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 11:27am

आदरणीय अलबेला जी आपकी हास्य ग़ज़ल पढ़ कर बड़ी ख़ुशी हुई. वाह लाजवाब

Comment by Albela Khatri on July 11, 2012 at 11:25am

aapka hardik dhnyavaad Rajesh Kumari ji........

utsah vardhan ke liye aabhaar !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 11, 2012 at 11:22am

हाहाहा क्या हास्य ग़ज़ल का फव्वारा छोड़ा बाबा जी 

सावन में मस्ताया छोरा बाबा जी जय हो भोले बाबा जय हो 
Comment by Albela Khatri on July 10, 2012 at 10:59pm

आदरणीय अग्रज श्री  सौरभ पाण्डेय जी........
बड़ा अच्छा लगा  आपका कथन----

यह सच है कि ओ बी ओ पर  मैं जो भी लिखता हूँ, केवल लिखने के लिए ही लिखता हूँ.........परन्तु  संयोग से अथवा देवकृपा से  उसमे कुछ न कुछ ऐसा अवश्य आ जाता है जो कि पाठकों का प्यार पा लेता है .  मुझे अफ़सोस है कि अपनी बेहतरीन रचनाएं मैं  यहाँ नहीं दे सकूँगा क्योंकि  अब तक जित्ता भी लिखा, सब का सब मेरे ब्लॉग पर पहले ही प्रकाशित  हो चुका है . और यहाँ का नियम है कि  अप्रकाशित होनी चाहिए रचना !

तो मैंने  स्वयं को सक्रिय और सतत प्रवाहमान रखने के हेतु से ही यहाँ बाबाजी का अवतरण किया है..........परन्तु  अब बाबाजी ने पैर जमा लिए हैं . उन पर किरपा आनी शुरू हो गयी है.

महामहिम,  एक बात तो तय है कि  जो चलता रहेगा वो कहीं न कहीं तो पहुंचेगा ही.................यही  मैंने अनुभव किया है  और यही मतलब आपके कथन का भी है.

__आपके स्नेह और  आशीर्वाद का मैं ऋणी हूँ  ....विनम्र आभारी हूँ
______जय हो !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 10, 2012 at 10:18pm

अलबेली सतरों से भरी इस ग़ज़ल को अलबेला ही लिख सकते हैं .. .

वैसे एक बात है, सिर्फ़ लिखने के लिये लिखना भी कभी-कभी अच्छे बिम्ब गढ़ लेता है. बधाई.

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