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****************************************

दवा ही बन गई है मर्ज़ इलाज क्या होगा;

उसे सुकून यक़ीनन बहुत मिला होगा; (१)

मैं नूरे-चश्म था जिसका कभी वो कहता है,

नज़र भी आये अगर तो बहुत बुरा होगा; (२)

हमारे बीच मसाइल हैं कुछ अभी बाक़ी,

ठनी है जी में यही, आज फ़ैसला होगा; (३)

जहाँ ख़ुलूस दिलों में है धड़कनों की तरह,

वहीं पे मंदिरों में जल रहा दिया होगा; (४)

तेरे गुनाह की पोशीदगी है दुनिया से,

मगर ख़ुदा की निगाहों से क्या छुपा होगा; (५)

गुज़ारता मैं तेरे साथ वक़्त और मगर,

न रोक आज के वो राह ताकता होगा; (६)

नहीं रहा जो जहाने-ज़वाल में 'वाहिद',

'चलो ये ठीक हुआ' आपने कहा होगा; (७)

****************************************

बह्रे-मुज़ारे मुसम्मन मुरक्कब मक़्बूज़ मख़्बून मक़्बूज़ महज़ूफ़ो मक़्तुअ

१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२

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Comment by नादिर ख़ान on November 17, 2012 at 6:29pm

तेरे गुनाह की पोशीदगी है दुनिया से,

मगर ख़ुदा की निगाहों से क्या छुपा होगा; 

गुज़ारता मैं तेरे साथ वक़्त और मगर,

न रोक आज के वो राह ताकता होगा

बहुत उम्दा गज़ल संदीप जी, एक से बढ़कर एक शेर कहे है अपने  बहुत खूब ।

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 16, 2012 at 11:58am

आदरणीया राजेश जी, आपका हार्दिक आभार! सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 15, 2012 at 10:48pm
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है संदीप द्विवेदी जी हर  शेर शानदार है दाद कबूल कीजिये 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 15, 2012 at 7:36pm

आदरणीया विनीता जी,

आपसे तो प्रारंभ से ही सीखता आया हूँ! आपका हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 15, 2012 at 7:35pm

आदरणीय अशोक जी,

प्रेरणास्पद शब्दों के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 15, 2012 at 7:34pm

आदरणीय डॉ. साहब,

आप जैसे माहिर फ़नकार से सराहना मिलती है तो निश्चय ही अच्छा लगता है! आपका हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 15, 2012 at 7:34pm

आपसे प्रशंसा के चंद शब्द पा कर चित्त प्रसन्न हुआ आदरणीय सौरभ जी! सादर धन्यवाद,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 15, 2012 at 7:32pm

आपका हार्दिक आभार वीनस जी! आप सदैव ही एक प्रेरक की भूमिका निभाते हैं! आपकी इस्लाह सचमुच बहुत ही शानदार है केवल डेढ़ मात्रा के शब्द के परिवर्तन से शे'र के अर्थ में विशेष प्रभाव आ रहा है! आपसे सराहना एवं अनुमोदन प्राप्त हुआ इसके लिए ऋणी हूँ! प्रतिक्रियाओं के उत्तर देने के पश्चात आवश्यक संशोधन कर रहा हूँ! आदरणीय संचालक महोदय से विनम्र निवेदन है कि इसे शीघ्र ही 'अप्रूव' करने की कृपा करें! सादर,

Comment by Vinita Shukla on November 15, 2012 at 9:11am

बहुत खूब...खूबसूरत गजल के लिए बधाई.

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 15, 2012 at 8:34am

आदरणीय संदीप जी 

                       सादर, बहुत ही उम्दा अशार मजा आगया. बधाई स्वीकारें. 

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