For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लिखी गई फिर पल्लव पर नाखून से कहानियां   

खिलखिलाई गुलशन में नृशंसता की निशानियां  

छिपे शिकारी जाल बिछाकर ,चाल समझ में आई 

उड़ती चिड़िया ने नभ से न  आने की  कसमें खाई 

बिछी नागफनी देख बदरिया मन ही मन घबराई 

गर्भ से निकली ज्यों ही बूँदे,  झट उर से चिपकाई 

सकुचाई ,फड़फडाई तितली देख देख ये सोचे 

कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे 

देख  सामाजिक ढांचा आज हर  मादा शर्मिंदा है 

एक सवाल अपने अस्तित्व से, री तू क्यूँ जिन्दा है ??

****************************************************

Views: 626

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 21, 2012 at 12:19pm

प्रिय अरुण हार्दिक आभार यदि यह पीड़ा आपने दिल से महसूस की 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 21, 2012 at 12:18pm

आदरणीय सौरभ जी अपने भावों में आपके अनुमोदन को पाकर रचना सार्थक हुई हार्दिक आभार आपका  ,आज के माहौल में नारी, बालिकाएं इतना असुरक्षित महसूस कर रही हैं की और शब्द नहीं हैं मेरे पास उस मनोस्थिति को बयाँ  करने के लिए ,आज कल में ही छोटी छोटी बच्चियों के द्वारा लिखी गई कवितायें उनके दिल की गहराइयों से निकले भाव जिसमे आक्रोश से भी ज्यादा डर ,सकुचाहट ,असुरक्षा ज्यादा महसूस की,पढने को मिली क्या होगा आगे चलकर यही चिंता  का विषय बन गया है कुछ कहते भी नहीं बनता सहते भी नहीं बनता लगता है जिस्म है जान नजर नहीं आ रही है।

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 21, 2012 at 11:30am

आदरणीया नारी पीड़ा को व्यक्त करती बेहद मार्मिक प्रस्तुति सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 10:42am

आदरणीय राजेश कुमारीजी, हृदय व्यथित है. मस्तिष्क सन्न है. भाव दुखी हैं. गला रुँधा है. आँखें नम हैं. मन क्रुद्ध है. व्यवहार अबूझ हैं. .. आपके हृदयोद्गार की एक-एक पंक्ति मानों हूल मारती हुई बेसाख़्ता अश्रुधार सी लगातार बहती जा रही है. आपका संवेदनशील हृदय आज करोड़ो जागरुक चेतनाओं की असीम पीड़ा को स्वर दे रहा है.

मन की पीड़ा के ज्वार को आपने जिस संयत ढंग से शब्द दिये हैं वह आपके दिनानुदिन सधती जा रही काव्य-प्रौढ़ता का परिचायक है, राजेशकुमारीजी. ऐसी पंक्तियों से निस्सृत भाव-पीड़ा में शिल्प, कथ्य, प्रवाह आदि के व्यवहार नहीं, कर्कश तथ्यों की आह स्थान पाती है जो संवेदनशील हृदयों के विश्वास के आकाश को हिंडोल-हिंडोल डालती है. आगे कुछ न कह सकूँगा. सादर..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 21, 2012 at 9:50am

प्रिय सुमन जी आपको रचना पसंद आई उसके लिए हार्दिक आभार 

Comment by SUMAN MISHRA on December 21, 2012 at 1:01am

बहुत सुंदर,,हर पंक्ति में सागर है , शब्दों में सार है राजेश दी,,,बहुत अच्छी कविता,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2012 at 4:56pm

आदरणीय प्रदीप कुमार जी दिल से आभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया के लिए ।आप सही कह रहे हैं अपनी आने वाली पीढ़ी के  लिए हमे अपने आज को सुधारना होगा ।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 20, 2012 at 3:52pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, 

सादर अभिवादन 

निश्चित तौर पे हम शर्मसार हैं .

काव्यात्मक अभियक्ति में व्यक्त व्यथा 

हम सब गुनाहगार हैं 

आइये नया भारत बनायें. 

रचना पर बधाई. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2012 at 3:33pm

आदरणीय लक्ष्मण जी मर्म को दिल से महसूस करने हेतु हार्दिक आभार काश इस बात को दुनिया में सभी समझें  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 20, 2012 at 3:19pm
नारी पीड़ा को उजागर करती अच्छी रचना -बधाई 
हमारी भी भावना है कि -

शर्म से झुकी है आँखे मानवता का ढोंग पीटते 

मजबूर हुई नारी जिन्दा रहने का प्रश्न करते 
लीक पीटते संसद में भी इस पर शोर मचाते
फांसी दो व्यभिचारो को अब विलम्ब न चाहते ।  

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service