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  बसंत ऋतु पर दोहे
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
 

ऋतु बसंत का आगमन,खुशियों का उन्माद,

खुशबु है मन भावन सी,मधुर-मधुर सा स्वाद।
 
ऋतु बसंत दस्तक करे, जाड़े का है अंत,
शरद विदाई  ले रहे,  दे ऋतुराज बसंत ।
 
नव अभिसार का मौसम,ऋतु बसंत ऋतुराज, 
नित मनुहार का मौसम, ले आया ऋतुराज।
 
पिली सरसों झूमती, खेतों में चहुँ और 
शब्द कोकिल गूंज रहे, कुहू कुहू का शौर।
 
वसुधा पर चादर चढ़ी, सरसों का है राज, 
मतवाला मौसम हुआ,सात सुरों में साज।  
 
अब सरसों जोगिन भई,ओढ़ पीत परिधान,
डाली डाली झूमती, माधव कृपा निधान ।
 
मन मंगल तनु बाँकुरा, सखी श्याम के संग,
सखियाँ झूमे  बावरी, कृष्ण बाँसुरी  संग ।
 
शिव भक्त भी नाच रहे, खूब बजावे चंग
झूम झूम कर गा रहे, सबके उर में  भंग।
 
डमरू ताल मृदंग पर, शिवशंकर का नृत्य।
मनमुग्ध नर नार करे,झूम झूम कर नृत्य ।   
 
माघ शुक्ल की पंचमी,बसंतोत्सव मनाय,
नवसृजन करे आज से, श्रेष्ठ सृजन हो जाय।
 
बासंती हुई सुहानी, मधुर रूप रस गंध, 
गंघ गीत लिखने लगी, फागुनी रस छंद ।
   
कविवर मधुर वाणी में, रचते नित नव छंद,
दे विणा पाणि शारदे, शब्द मधुर कवि वृन्द।
 
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 15, 2013 at 12:36pm
दोहे पसंद करने के लिए अपका हार्दिक आभार  श्री बसंत नेमा जी,
आपके माता पिता को नमन जिन्होंने आपका यह सुन्दर नाम रखा है 
Comment by बसंत नेमा on February 15, 2013 at 12:08pm

आदरणीय आप के बसंत के दोहे पढ कर अपने नाम पर हर्ष हो रहा है ..........बहुत मनोहरी दोहे है 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 15, 2013 at 11:05am

बसंत ऋतू पर दोहे मनोहारी कह कर मान बढ़ने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

Comment by vijay nikore on February 15, 2013 at 1:43am
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी,
बसंत ऋतु पर यह दोहे अति मनोहारी हैं।
आपको ढेर बधाई।
सादर,
विजय निकोर

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