बातों से भी ये गम क्यूँ कम नही होते,
आंसुओ से दिल के कोने नम नही होते.
थी बहुत उम्मीद तो अपनों से इस दिल को कभी,
पर हमेशा साथ ये हमदम नही होते...
बेबसी हंसने लगी ख़ामोशी अब है गूंजती,
बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.
जहाँ ख़ुशी वहां खिलती मन की हर कली,
उन घरानों में क्या कभी मातम नही होते...
प्यार है बस जहां रंजीश नही कोई कभी,
क्या कभी ऐसे दिलों में गम नही होते.
याद तो करते है हम उनको सदा ही रात दिन,
ख्वाब में उनके कभी क्या हम नही होते...
अब तो भूख भी लगना भूल गई ,
और प्यास ने लगना छोड़ दिया.
हर दिन बना जीवन उपवास उनका,
क्या कभी ऐसों पर खुदा मेहरबान नही होते...
Comment
आदरणीय विजय भाई ...मेरी रचना पर पुनः टिपन्नी के लिए तहेदिल से शुक्रिया..जी बिलकुल भाई में जल्द ही एक और कविता लिख रही हु आशा है आपको पसंद आएगी..
आदरणीया आरती जी:
इस कविता पर मैं पहले प्रतिक्रिया दे चुका था,
पर आज इसे पुन: पढ़ने पर कुछ और कहने को
मन किया।
बेबसी हंसने लगी ख़ामोशी अब है गूंजती,
बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.
जहाँ ख़ुशी वहां खिलती मन की हर कली,
उन घरानों में क्या कभी मातम नही होते..
आपकी इस कविता के मार्मिक भाव अप्रतिम हैं।
ऐसी ही और कविताओं की प्रतीक्षा में हूँ।
सादर,
विजय निकोर
आपका तहेदिल से शुक्रिया डॉक्टर अजय जी..
आपका हार्दिक धन्यवाद नादिर सर..
बेबसी हंसने लगी ख़ामोशी अब है गूंजती,
बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.....
याद तो करते है हम उनको सदा ही रात दिन,
ख्वाब में उनके कभी क्या हम नही होते...
बहुत खूब कहा आरती जी ....
ARTI JI RACHNA BAHUT SUNDER AND TOUCHING HAI BADHAI
आपका हार्दिक धन्यवाद अजय जी..
बहुत खूबसूरत रचना ...बधाई ...|मैं कहना चाहूँगा कि -A chink in the wall is enough to see the world.
आपका तहेदिल से धन्यवाद राजेश मैंम ...
बेबसी हंसने लगी ख़ामोशी अब है गूंजती,
बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.
जहाँ ख़ुशी वहां खिलती मन की हर कली,
उन घरानों में क्या कभी मातम नही होते...---
बेबसी हंसने लगी ख़ामोशी अब है गूंजती,
बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.
जहाँ ख़ुशी वहां खिलती मन की हर कली,
उन घरानों में क्या कभी मातम नही होते...
ये पंक्तियाँ बहुत सुंदर बन पड़ी हैं बहुत भाव पूर्ण रचना आरती जी बहुत बधाई
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