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है ज़मी पर शोर कितना [ग़ज़ल]

है ज़मी पर शोर कितना , आसमाँ खामोश है ।

मन में लाखों हलचलें हैं , आत्मा खामोश है ।

ना कभी करता सवाल , ना कभी देता जवाब ,

हमको देकर ज़िन्दगी , परमात्मा खामोश है ।

आदमीयत सड़ रही , लुट रहा बागे जहाँ ,

पर कहीं चुप चाप बैठा , बागबाँ खामोश है ।

चाहतें दुनिया की ज्यादा , देर तक चलती नहीं,

ताज़ की बरबादियों पर , शाहजहाँ खामोश है ।

जो हकीकत थे कभी, बनकर फ़साने रह गए ,

वक्त के हाथों लुटा , हर कारवाँ खामोश है ।

देके अपनी ज़िन्दगी, हमने बनाये थे कभी,
आज मय्यत पर मेरी , वो हर मकाँ  खामोश है ।

देवता जो थे गुनाहों , के सफ़ाई दे रहे ,

उसकी महफ़िल में खडा, हर बेगुनाह खामोश है ।

व्यापार चलते हैं यहाँ , बाज़ार चलते हैं यहाँ ,

पर दिलों में प्यार की, हर दास्ताँ खामोश है ।

मौलिक व अप्रकाशित

नीरज

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 24, 2013 at 2:45pm

ना कभी करता सवाल , ना कभी देता जवाब ,

हमको देकर ज़िन्दगी , परमात्मा खामोश है क्या बात है बेहतरीन. सादर बधाई के साथ

Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 11:13am

ना कभी करता सवाल , ना कभी देता जवाब ,

हमको देकर ज़िन्दगी , परमात्मा खामोश है ।

daad sweekare bahut khoob


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Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 10:05am

क़ाफ़िया को ठीक करें..  ग़ज़ल के मिसरों के वज़्न साथ ही लिखने की आदत कई दुरूहता से उबार लेती है.

शुभेच्छाएँ

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 7:23pm

achchi abhivyakti ke sath kahi gai gazal ke liye badhai .

Comment by Abhishek Kumar Jha Abhi on July 23, 2013 at 12:34pm
बहुत सुन्दर गजल।
Comment by aman kumar on July 23, 2013 at 8:40am

ना कभी करता सवाल , ना कभी देता जवाब ,

हमको देकर ज़िन्दगी , परमात्मा खामोश है|

भरपूर दाद देता हु ! 

बहुत अच्छे !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 22, 2013 at 7:20pm

आ0 नीरज भाई जी,    बहुत सुन्दर गजल। वाह...! हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by coontee mukerji on July 22, 2013 at 6:42pm

वाह!  वाह! बहुत उम्दा. एक एक लफ़्ज़ सच्चाई के रंग में रंगा हुआ. पढ़ कर मजा आ गया.

चाहतें दुनिया की ज्यादा , देर तक चलती नहीं,

ताज़ की बरबादियों पर , शाहजहाँ खामोश है ।

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