For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहचान

 

                     

हटा कर धूल जब देखा अतीत के  आईने ने हमको,

उसने भी न पहचाना और अनजान-सा देखा हमको,

सालों बाद हमसे पूछे बहुत सवाल पर सवाल उसने,

हर सवाल के जवाब में हमने नाम तुम्हारा था दिया।

                      

ऐसा रहा तस्सवुर तुम्हारा इस सूनी ज़िन्दगी पर मेरी,

नींद आए  तो  देखे  यह  हर  धुँधले  ख़वाब  में  तुमको,

न  आए  नींद तो अँधेरे में यह  अंधे  की टूटी लकड़ी-सी,

ढूँढती है यूँ .. यहाँ, वहाँ, हर मोड़, हर चौराहे पर तुमको।

 

पूछे जो आईना तुमसे तो तुम भी कह देना झूठ उससे,

वह भूल थी तुम्हारी कि हाँ तुमने कभी चाहा था हमको,

वरना ज़िन्द्गी की इन वीरान-सुनसान-तंग गलियों में

इश्क के दर्द से तुम्हारी भी तो कभी कोई पहचान न थी।

   

--------                                                                                                                                                                                           

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 789

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 21, 2013 at 6:41am

आदरणीय सुलभ जी:

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

सादर,

वि्जय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:47pm

आदरणीय विजय निकोर जी,बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 1:52pm

आदरणीय रविकर जी:

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 11:40am

आदरणीय गिरिराज जी:

कविता की सराहना के लिए आपका आभार शत-शत।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 11:34am

आदरणीय केवल प्रसाद जी:

आपके उत्साह वर्धन से ्यह रचना सार्थकता को
प्राप्त हुई।
आपका हार्दिक धन्यवाद।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 11:30am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी:

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 11:26am

आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक और प्रेरक है मेरे लिए।

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अरून जी।

सादर,

विजय निकोर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 19, 2013 at 9:37pm

आदरणीय विजय निकोर जी , सुंदर रचना प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 7:51pm

मन में गहरे तक बसे भाव बिना किसी बनावट के अभिव्यक्त हुए हैं 

शुभकामनाएँ आ० विजय जी 

सादर 

Comment by विजय मिश्र on August 19, 2013 at 5:13pm
विजयजी ,भावनाएँ भी कभी-कभी कितने गहरे गोते खिलाती है ! बहुत ही गमगीन मुद्रा है इसकी . आपकी और कविताओं की तरह इसे पढकर चहक नही पाया ,उल्टा सोचने लगा .अपने ढंग की इस अनूठी कविता के लिए अक्षुण्ण शुभकामना .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
15 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service