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सितार के

सुरमई तारों की झंकार से

गूँज उठी

स्वप्न नगरी..

समय के धुँधलके आवरण से

शनैः शनैः

प्रस्फुटित हो उठी

एक आकृति

अजनबी

अनजान..

स्वप्नीली पलकें

संतृप्त मुस्कान

प्राण-प्राण अर्थ

निःशब्द..

निःस्पर्श स्पंदन

कण-कण नर्तन

क्षण विलक्षण

मन प्राण समर्पण

सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर

अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !

 

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on August 27, 2013 at 11:28pm

अहा !!!  आदरणीया प्राची जी आपकी तारीफ मे क्या लिखूँ  , अति सुंदर भावभिव्यक्ति । बधाई । 

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 27, 2013 at 9:00pm

सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर

अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !

 .....................................................badhai..parachi ji


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 27, 2013 at 7:35pm

वाह बहुत खूब, आदरणीया डॉ. प्राची मैडम बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति एक एक शब्द जीवंत हो उठा है, दिली दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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