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गाँव बसे कैसे भला ,करते बंदरबांट !
कम्बल तो देते मगर ,लूट लिये सब खाट !!१

हंस देखता रह गया ,बगुले के सर ताज !
गीदड़ अब राजा बना ,गीदड़ सिंह समाज !!२

आदि अंत सब हैं वही ,उनका ही संसार !
वो मिटटी के तन गढ़े ,कितने कुशल कुम्हार !!३

धन की चंचल चाल का ,फैला है भ्रमजाल !
जो पाते वो भी विकल ,बिन पाए बेहाल !!४

पर पीड़ा दिखती नहीं, ऐसे कैसे लोग!
दीमक जैसा खा रहा ,लालच नामक रोग !!५
*********************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on October 4, 2013 at 2:58pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अनुराग जी। सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 4, 2013 at 2:58pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई ब्रिजेश जी। सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 4, 2013 at 2:56pm

उत्साह वर्धन हेतु  बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अरुन शर्मा जी  ///सादर 

 कुम्हार= कु म्हा र=121 भाई मैंने इसे ऐसा मानकर लिखा है,क्रिपा  कर मार्गदर्शन करें 

Comment by राजेश 'मृदु' on October 3, 2013 at 2:17pm

वाह-वाह राम जी, सुंदर दोहे रचे हैं आपने, हार्दिक बधाई

Comment by विजय मिश्र on October 3, 2013 at 2:15pm
सुंदर , बधाई राम शिरोमणिजी
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2013 at 10:59pm

आ0 राम शिरोमणि भार्इ जी, बहुत सुन्दर दोहे। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:27pm

बहुत खूब आदरणीय राम भाई..... लेकिन विशेषज्ञों की टिप्पणी पर अवश्य ध्यान दीजिएगा....

दोहे सुंदर रच दिए, तुमने भाई राम।

कमी न हो उत्साह में, पूरण होंगे काम।।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 4:51pm

सबसे कमजोर दोहा मुझे नंबर २ लगा और सबसे बेहतरीन नंबर १, सभी दोहें अच्छे हुए हैं, बधाई । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 2:17pm

वाह ! - वाह अति सुन्दर ! हार्दिक बधाई स्वीकार करें !

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 1:23pm

 आदरणीय राम भाई बहुत ही सुन्दर दोहे! आपके दोहे लाजवाब हैं! कथ्य की द्रष्टि से भी उच्च! आपको हार्दिक बधाई!

आपसे और इस मंच के सुधी जनों से एक शंका का निवारण चाहता हूँ! सही शब्द क्या है- 'सिर' या 'सर'?

सादर!

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