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मुश्किल काम होता है

चढ़ाये रखना ,

लगातार बहुत समय तक 

सजावट को ,

रह पाये कोई अगर तुम्हारे साथ

अधिक समय तक

लगातार, तो

फीकी पड़ने लगेंगी

उतरने लगेंगी

दरकने लगेंगी

परत दर परत

सजावटें

अव्यवस्थित हो जायेंगी

सारी सावधानियाँ

जाहिर होने लगेगा

असली रूप !!!

मुखौटे

चाहे आप चेहरे पे चढ़ाये हों

या

अपनी भावनाओं पर !!!!

*******************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 19, 2013 at 10:45pm

भावदशा का यह प्रारूप सुखकर लगा है, आदरणीय गिरिराजभाई.. .

सजावट वस्तुतः बनावट है.. :-)))

जय होऽ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 15, 2013 at 9:05pm

आदरणीय नीरज भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!

Comment by Neeraj Neer on December 15, 2013 at 8:52pm

बहुत ही सत्य बात कही है ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 13, 2013 at 8:00pm

आदरणीया मीना जी , रचना की सराहना और  उत्साह वर्धन के लिये  आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!

Comment by Meena Pathak on December 13, 2013 at 6:45pm

बहोत सही बात कही आप ने आदरणीय गिरिराज जी, बहुत सुन्दर,  सादर बधाई स्वीकारें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 13, 2013 at 2:09pm

आदरणीया प्राची जी , रचना की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे  दिल से  शुक्रिया !!!!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 13, 2013 at 2:07pm

आदरणीय हेमंत भाई , रचना की सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया !!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 10:00am

कृत्रिम मुखौटों की भंगुरता पर सुन्दर अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई 

Comment by hemant sharma on December 12, 2013 at 11:09pm

aa. bahut hi khubshoorat badhai aapako........

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 12, 2013 at 10:20pm

आदरणीय शिज्जू भाई , !!!!! रचना की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!

कृपया ध्यान दे...

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आशा है अवश्य ही शीर्षक पर विचार करेंगे आदरणीय उस्मानी जी।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
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