For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या(ग़ज़ल)

2122 -1212- 112

कट ही जाये अगर ज़बान भी क्या

फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या

 

आदमीयत के मोल जो मिली हो

दोस्तो ऐसी कोई शान भी क्या

 

मेरे पैरों में आज पंख लगे

अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या

 

छोड दें गर ज़मीन अपने लिये

ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या

 

और के काम आ सके न कभी

ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या

 

भाग के गर मुसीबतों से कहीं

बच ही जाये तो ऐसी जान भी क्या

 

एक चिंगारी से लगी थी आग

अब बचेगा मेरा मकान भी क्या

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 832

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 7:04pm

आदरणीया महिमा जी हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 7:41pm

मेरे पैरों में आज पंख लगे

अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या... 

 

छोड दें गर ज़मीन अपने लिये

ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या.... आदरणीय शिज्जू जी ..बहुत ही खुबसूरत गज़ल.. बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2013 at 3:11pm

आदरणीया वंदना जी आपका तहेदिल से शुक्रिया

Comment by vandana on December 22, 2013 at 7:47am

 

मेरे पैरों में आज पंख लगे

अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या

 

छोड दें गर ज़मीन अपने लिये

ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या

 

और के काम आ सके न कभी

ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या

बहुत शानदार अशआर आदरणीय शिज्जू जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 20, 2013 at 11:29pm

आदरणीय लक्ष्मण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 20, 2013 at 11:28pm

आदरणीय सौरभ सर हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 20, 2013 at 11:28pm

आदरणीय विजय निकोर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 8:14am

छोड दें गर ज़मीन अपने लिये

ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या

बहुत खूब


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 12:50am

मेरे पैरों में आज पंख लगे

अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या... . भाईजी, बहुत बढिया शेर हुआ है..

इस ग़ज़ल के लिए बधाई.. .

Comment by vijay nikore on December 19, 2013 at 7:19pm

//एक चिंगारी से लगी थी आग

अब बचेगा मेरा मकान भी क्या//

 

इस बेहतरीन गज़ल के लिए बधाई।

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी शुक्रिया आ और गुणीजनों की टिप्पणी भी देखते हैं"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। छठा और…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय आज़ी तमाम साहिब आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, ग़ज़ल अभी…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अनजान कब समन्दर जो तेरे कहर से हम रहते हैं बचके आज भी मौजों के घर से हम कब डूब…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 तूफ़ान देखते हैं गुजरता इधर से हम निकले नहीं तभी तो कहीं अपने घर से हम 1 कब अपने…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"निकले न थे कभी जो किनारों के डर से हमकिश्ती बचा रहे हैं अभी इक भँवर से हम । 1 इस इश्क़ में जले थे…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए और दिये गये मिसरे पर ग़ज़ल के उम्दा…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"चार बोनस शेर * अब तक न काम एक भी जग में हुआ भला दिखते भले हैं खूब  यूँ  लोगो फिगर से हम।।…"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अब और दर्द शे'र में लाएँ किधर से हम काग़ज़ तो लाल कर चुके ख़ून-ए-जिगर से…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सपने दिखा के आये थे सबको ही घर से हम लेकिन न लौट पाये हैं अब तक नगर से हम।१। कोशिश जहाँ ने …"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"वाक़िफ़ हैं नाज़नीनों की नीची-नज़र से हम दामन जला के बैठे हैं रक़्स-ए-शरर से हम सीना-सिपर हैं…"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service