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ध्यान से देखो

वो पॉलीथीन जैसी रचना है

हल्की, पतली, पारदर्शी

 

पॉलीथीन में उपस्थित परमाणुओं की तरह

उस रचना के शब्द भी वही हैं

जो अत्यन्त विस्फोटक और ज्वलनशील वाक्यों में होते हैं

 

वो रचना

किसी बाजारू विचार को

घर घर तक पहुँचाने के लिए इस्तेमाल की जायेगी

 

उस पर बेअसर साबित होंगे आलोचना के अम्ल और क्षार

समय जैसा पारखी भी धोखा खा जाएगा

प्रकृति की सारी विनाशकारी शक्तियाँ मिलकर भी

उसे नष्ट नहीं कर सकेंगी

 

वो पॉलीथीन जैसी रचना

एक दिन कालजयी कचरा बन जाएगी

और सामाजिक पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाएगी 

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2014 at 3:58pm

बहुत बहुत धन्यवाद Akhand Gahmari जी

Comment by Akhand Gahmari on April 9, 2014 at 6:49pm

बेहतरीन रचना के लिए बहुत सी बधाई आपको

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2014 at 10:48am

बहुत बहुत शुक्रिया Baidyanath Saarthi जी

Comment by Saarthi Baidyanath on April 4, 2014 at 1:52pm

आदरणीय , आपकी विचारशीलता को नमन ! कल्पनाशीलता को नमन ! बेजोड़ सृजन !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2014 at 1:29pm

//पर लिखूँगा तो मैं वही जो मैं लिखना चाहता हूँ न कि जो पाठक पढ़ना चाहता है //

ग़ज़ब !

आदरणीय धर्मेन्द्रजी, आप कई बार ऐसी बातें करते हैं जिन्हें बार-बार आपसे सुनना इस मंच के लिए ही नहीं हिन्दी साहित्य के लिए आवश्यक है. हिन्दी भाषी समाज और आशान्वित होगा. 

आगे कुछ नहीं कहूँगा. बस आशा है कि आप ऐसा कहते रहें.

सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:26am

बहुत बहुत शुक्रिया Saurabh Pandey जी। ये रचना ही ऐसी है कि विज्ञान के टर्म्स के बिना जो मैं कहना चाह रहा हूँ वो कह नहीं पाऊँगा। पाठक तक अगर रचना नहीं पहुँच पाती तो ये मेरी मजबूरी है। पर लिखूँगा तो मैं वही जो मैं लिखना चाहता हूँ न कि जो पाठक पढ़ना चाहता है :)।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:21am

बहुत बहुत शुक्रिया विजय मिश्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:21am

बहुत बहुत धन्यवाद Dr Ashutosh Mishra जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 3:16am

विशेष मंशा के वशीभूत सुगढ़ शिल्प के आवरण में प्रस्तुत की गयी रचनाओं पर उठी आपकी उंगली अत्यंत तोषकारी लगी.
यह अवश्य है कि विज्ञान के टर्म्स इस रचना को विशिष्ट बना दे रहे हैं, जिस कारण अन्य विषय से प्रशिक्षित पाठक स्वयं को असहाय देख रहे होंगे. 

Comment by विजय मिश्र on March 26, 2014 at 4:51pm
आज के साहित्यिक प्रदूषण पर उचित सोच ,भाषा और भाव से अधिक आजका रचनाकार प्रभावी है |स्पष्ट अभिव्यक्ति केलिए बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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