For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222- 1222- 1222

मुसीबत साथ आई हमसफर की तरह

लगे है धूप भी अब राहबर की तरह

 

सहे जाता हूँ मौसम की अज़ीयत मैं                     अज़ीयत =यातना

बियाबाँ मे किसी उजड़े शजर की तरह

 

झुलसने लगता है मन सुब्ह उठते ही

हुये दिन गर्मियों की दोपहर की तरह

 

घुटन होने लगी है इन हवाओं मे

जहाँ लगने लगा है बन्द घर की तरह

 

हिसारे ग़म से बाहर लाये कोई तो                    हिसारे ग़म= ग़म का घेरा

मुसल्सल घूमता हूँ इक भँवर की तरह

 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 867

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2014 at 8:18am

आदरणीय लक्ष्मण सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2014 at 8:18am

आदरणीय केवल प्रसाद जी आपका तहेदिल से शुक्रिया

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 1, 2014 at 11:18am

आ0 शिज्जू भाई जी, अच्छी गजल के लिए बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2014 at 11:05am

आदरणीय भाई शिज्जू जी , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है . बस इतना ही कहना चाहूंगा -

गम हमारा यार होकर बैठता , सुख सदा मेहमान बनकर आ गया

कोटि कोटि हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 10:04am

आदरणीय विजय निकोर सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 10:03am

आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया 

Comment by vijay nikore on April 1, 2014 at 9:53am

//झुलसने लगता है मन सुब्ह उठते ही

हुये दिन गर्मियों की दोपहर की तरह//

इस अच्छी गज़ल के लिए आपको बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 1, 2014 at 9:43am

आ. मुकेश भाई , जहाँ तक मेरी जानकारी है , बह्र मे कोई गड़बड़ी नही है , किसी भी बह्र के अंतिम रुक्न मे एक अरिरिक्त मात्रा  की छूट कोई भी ले सकता है , जिसे आगे निभाना भी ज़रूरी नही रहता ॥ बस मात्रा गिरा के 2 को 1 करके छूट नही ले सकते ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 1, 2014 at 9:38am

आ. शिज्जू भाई , एक और  खूब सूरत गज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥

सहे जाता हूँ मौसम की अज़ीयत मैं                  

बियाबाँ मे किसी उजड़े शजर की तरह -- बहुत खूब भाई जी , आपको अनेकों बधाइयाँ ॥

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 8:41am

अब मुकेश जी ये बात तो अब सुधिजन ही बता सकते हैं क्यूँकि बह्र के सम्बंध में मेरी जानकारी कम ही है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
3 hours ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
5 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
5 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service