For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मत कहो तुम है खिलाफत - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    2122

**


दर्द  दिल  का  जो  बढ़ा  दे, बोलिए  मरहम  कहाँ है
रौशनी  के दौर में  अब तम  के  जैसा  तम  कहाँ है

**
कर  रहे  तुम  रोज  दावे   चीज  अद्भुत   है  बनाई
नफरतें  पर  जो  मिटा दे  लैब में  वो  बम  कहाँ है

**
जै जवानों, जै किसानों,  की सदा  में थी कशिश जो
अब  सियासत  की  कहन  में यार वैसा दम कहाँ है

**
मत कहो तुम है खिलाफत धार के विपरीत चलना
चाहते  बस  जानना  हम  धार  का  उद्गम कहाँ है

**
दो  दिनों  की आशिकी  में  चाहतें  होती  तनों  की
अब जवानी  में तनिक  भी शेष  वो संयम कहाँ है

**
प्यार   होता   तो   जुदाई  भी  हमें  तो  रंज  देती
पर खुशी का पाश दे जो, दिल में ऐसा गम कहाँ है

**
सिर्फ  मेरी  राह   में  ही  रोकते  हैं  घन  उजाला
आसमाँ में तो ‘मुसाफिर’ चाँदनी भी कम कहाँ है

**
रचना मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 28, 2014 at 10:55am

बहुत सुन्दर गज़ल कही है। सभी शेर अच्छे लगे। बधाई।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 28, 2014 at 10:48am

दो  दिनों  की आशिकी  में  चाहतें  होती  तनों  की
अब जवानी  में तनिक  भी शेष  वो संयम कहाँ है.............बिलकुल सच कहा


प्यार   होता   तो   जुदाई  भी  हमें  तो  रंज  देती
पर खुशी का पाश दे जो, दिल में ऐसा गम कहाँ है................क्या बात है, बहुत खुबसूरत शेर हुआ

बहुत लाजवाब गजल आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, दिली बधाइयाँ स्वीकारें

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2014 at 10:43am

आदरणीय भाई सलीम  जी आपको  ग़ज़ल अच्छी  लगी  , आपने उत्साह वर्धन किया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद . 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2014 at 10:41am

आदरणीय भाई ashutosh   जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2014 at 10:39am

आदरणीय बहन राजेश जी , प्रसंशा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2014 at 10:35am

भाई गिरिराज जी , उत्साहवर्धन के हिये हार्दिक धन्यवाद .स्नेह मिलता रहे यही कामना है .   .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2014 at 10:33am

आदरणीय कुंती दीदी ,उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2014 at 10:31am

आदरणीय मुकेश भाई ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by SALIM RAZA REWA on April 27, 2014 at 8:47pm

कर  रहे  तुम  रोज  दावे   चीज  अद्भुत   है  बनाई
नफरतें  पर  जो  मिटा दे  लैब में  वो  बम  कहाँ है

...mubarak ho ...

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 3:44pm

हर शेर बेहतरीन है ..दो दिनों की आशिकी में चाहतें होती तनों की
अब जवानी में तनिक भी शेष वो संयम कहाँ है लेकिन इस मंपस्नादीदा शेर के लिए हार्दिक बधाई सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service