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हर खुशी हमको हुई है अब सवालों की तरह
और दुख आकर मिले हैं नित जवाबों की तरह
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चाँद निकला तो नदी में देख छाया खुश रहे
रोटियाँ अब हम गरीबों को खुआबों की तरह
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यूं कभी जिसमें कहाये यार हम महताब थे
उस गली में आज क्यों खाना खराबों की तरह
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एक भी आदत नहीं ऐसी कि तुझको गुल कहूँ
पास काँटें क्यों रखो फिर तुम गुलाबों की तरह
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है हमें तो जिन्दगी में साँस-धड़कन यार ज्यों
आप को माना मुहब्बत है शराबों की तरह
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कौन क्या, मुश्किल हुई पहचान चाहे धूप हो
आचरण सबको यहाँ अब, है नकाबों की तरह
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किस तरह नंगा किया है, देखिए बाजार ने
डायरी थे, बिक रहे जो अब किताबों की तरह
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मैलिक और अप्रकाशित
Comment
इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय
हर खुशी हमको हुई है अब सवालों की तरह
और दुख आकर मिले हैं नित जवाबों की तरह........सुन्दर भाव
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चाँद निकला तो नदी में देख छाया खुश रहे
रोटियाँ अब हम गरीबों को खुआबों की तरह...........बहुत खूब
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आदरणीय भाई सौरभ जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
अच्छे अश’आर हुए हैं, भाईजी. दाद कुबूल करें
आदरणीय मुकेश भाई ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय लक्ष्मण जी
बहुत अच्छी ग़ज़ल है. मुबारकबाद क़ुबूल करें
कौन क्या, मुश्किल हुई पहचान चाहे धूप हो
आचरण सबको यहाँ अब, है नकाबों की तरह
आदरणीय बंधू गिरिराज जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए आभार . मार्गदर्शन करते रहिये .. शुभेच्छा ..
आदरणीय भाई जीतेन्द्र जी , हर असआर पर तफ्तीश से विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब बढिया गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
एक भी आदत नहीं ऐसी कि तुझको गुल कहूँ
पास काँटें क्यों रखो फिर तुम गुलाबों की तरह ------------ बहुत खूब , भाई जी बधाई !!
हर खुशी हमको हुई है अब सवालों की तरह
और दुख आकर मिले हैं नित जवाबों की तरह.............बहुत गहरे भाव, सच! इंसान को दूसरों पर सवाल रखने में बहुत ख़ुशी मिलती है किन्तु जवाब में..
कौन क्या, मुश्किल हुई पहचान चाहे धूप हो
आचरण सबको यहाँ अब, है नकाबों की तरह..............वाह! क्या कहने
किस तरह नंगा किया है, देखिए बाजार ने
डायरी थे, बिक रहे जो अब किताबों की तरह................बहुत बहुत खूब
बहुत अच्छी गजल हुई आदरणीय लक्ष्मण जी, हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय कुंती बहन आपको ग़ज़ल अच्छी लगी .मन में ख़ुशी हुई . उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
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