2122 2122 2122 2122
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दर्द दिल का जो बढ़ा दे, बोलिए मरहम कहाँ है
रौशनी के दौर में अब तम के जैसा तम कहाँ है
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कर रहे तुम रोज दावे चीज अद्भुत है बनाई
नफरतें पर जो मिटा दे लैब में वो बम कहाँ है
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जै जवानों, जै किसानों, की सदा में थी कशिश जो
अब सियासत की कहन में यार वैसा दम कहाँ है
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मत कहो तुम है खिलाफत धार के विपरीत चलना
चाहते बस जानना हम धार का उद्गम कहाँ है
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दो दिनों की आशिकी में चाहतें होती तनों की
अब जवानी में तनिक भी शेष वो संयम कहाँ है
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प्यार होता तो जुदाई भी हमें तो रंज देती
पर खुशी का पाश दे जो, दिल में ऐसा गम कहाँ है
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सिर्फ मेरी राह में ही रोकते हैं घन उजाला
आसमाँ में तो ‘मुसाफिर’ चाँदनी भी कम कहाँ है
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रचना मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आदरणीय प्राची बहन आपकी प्रशंसा मिली .लेखन सफल हुआ .मार्गदर्शन करते रहना . हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय भाई सतनारायण जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
मत कहो तुम है खिलाफत धार के विपरीत चलना
चाहते बस जानना हम धार का उद्गम कहाँ है...............वाह
बहुत सुन्दर शेर हुआ है
हार्दिक बधाई प्रस्तुत ग़ज़ल पर
आ. धामी जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल बनी है सादर बधाई.
कर रहे तुम रोज दावे चीज अद्भुत है बनाई
नफरतें पर जो मिटा दे लैब में वो बम कहाँ है ** वाह वाह
आदरणीय भाई गजेन्द्र जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार .
आदरणीय भाई राणा प्रताप जी , आपका सुझाव सर आँखों पर , मार्गदर्शन करते रहिये . प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय भाई विजय जी , आपसे प्रसंसा पाना अहोभाग्य है . आपका आशीष मिलता रहे यही कामना है .
आदरणीय भाई जीतेन्द्र जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
दो दिनों की आशिकी में चाहतें होती तनों की
अब जवानी में तनिक भी शेष वो संयम कहाँ है
वाह ! बहुत खूब कहा है भाई लक्ष्मण धामी जी।
खिलाफ़त सही शब्द नहीं है, यह खलीफा से सम्बंधित है| 'विरोध' के लिए सही शब्द 'खिलाफ' से बना मुखालफ़त है| अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई|
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